रांची: झारखंड हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 2013 में पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार और पांच अन्य पुलिसकर्मियों की हत्या से जुड़े बहुचर्चित नक्सली हमले के मामले में बंटा हुआ फैसला सुनाया है। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने दो आरोपियों- सुखलाल उर्फ प्रवीर दा और सनातन बास्की उर्फ ताला दा को मौत की सज़ा सुनाई थी। हाईकोर्ट की बेंच में शामिल न्यायमूर्ति रोंगन मुखोपाध्याय ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति संजय प्रसाद ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई फांसी की सजा को बरकरार रखा।
बेंच ने 197 पन्नों के फैसले में यह विभाजित मत सुनाया। चूंकि फैसला एकमत नहीं था, इसलिए अब मामला मुख्य न्यायाधीश को भेजा गया है, जो इसे किसी अन्य बेंच को सौंपेंगे।
2013 का है दर्दनाक हमला
30 जुलाई 2013 को पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार और उनकी टीम का काफिला एक पुलिया के पास धीमा हुआ था, तभी 25-30 सशस्त्र नक्सलियों ने अचानक हमला कर दिया। इस हमले में एसपी समेत छह पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी। इस हमले में मुख्य आरोपी सुखलाल उर्फ प्रवीर दा और सनातन बास्की उर्फ ताला दा को बताया गया। ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ दोनों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
न्यायमूर्ति मुखोपाध्याय: “गंभीर खामियों से भरी है जांच प्रक्रिया”
जस्टिस रोंगन मुखोपाध्याय ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले को “संदेह से परे” साबित नहीं कर सका। उन्होंने मुख्य गवाह पीडब्ल्यू 31 (एसपी की गाड़ी का ड्राइवर) के बयान को नकारते हुए कहा कि उसने जो नाम लिए, उन्हें किसी अन्य गवाह ने पुष्ट नहीं किया।
उन्होंने टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) को “फार्सिकल एक्सरसाइज” करार दिया और कहा कि इसमें गंभीर खामियां थीं। न तो स्वतंत्र गवाह थे और न ही अभियोजन गवाहों ने पहचान के दौरान स्पष्ट रूप से आरोपियों की पहचान की।
न्यायमूर्ति संजय प्रसाद: “हमला सुनियोजित था, आरोपी ने खुद कुबूल किया”
वहीं जस्टिस संजय प्रसाद ने इस हमले को एक सुनियोजित घात बताकर ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर हमला हुआ वह रणनीतिक रूप से ऐसा स्थान था जहां गाड़ियां स्वतः धीमी हो जाती हैं।
उन्होंने यह भी माना कि आरोपी सनातन बास्की ने खुद स्वीकार किया था कि उसने गोली चलाई थी। इसके अलावा, एसपी के बॉडीगार्ड (PW 30) ने प्रवीर दा की पहचान की थी, जो अभियोजन की साख को मजबूत करता है। अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई में किसी अन्य बेंच को सौंपा जाएगा, जो इस विभाजित फैसले पर अंतिम निर्णय लेगी।