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Hottest year ever 2024 : अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा 2024, तापमान में हुई रिकॉर्ड वृद्धि

by Anand Mishra
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वाशिंगटन/नई दिल्ली : यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस (Copernicus) ने शुक्रवार को पुष्टि की है कि वर्ष 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष (Hottest year ever) रहा है। यह पहला मौका है जब वैश्विक औसत तापमान (Global Average Temperature) पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-industrial Level) से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज हुआ। एजेंसी का कहना है कि यह उबाल (Boil) एक गंभीर जलवायु परिवर्तन (Severe Climate Change) की ओर इशारा करता है, जिसे अब नकारा नहीं किया जा सकता।

2024 में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी

कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (C3S) के वैज्ञानिकों के अनुसार, जनवरी से जून तक हर माह ने अब तक का सबसे गर्म माह बनने का रिकॉर्ड स्थापित किया। जुलाई से दिसंबर तक, सिर्फ अगस्त को छोड़कर हर माह 2023 के बाद दूसरा सबसे गर्म माह रहा। इस साल, वैश्विक औसत तापमान 15.1 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991-2020 के औसत से 0.72 डिग्री ज्यादा है।

जलवायु संकट का बढ़ता प्रभाव

1850 से लेकर अब तक के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 ने तापमान के मामले में सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह पहली बार है जब औसत वैश्विक तापमान पूरे कैलेंडर वर्ष में 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा है। यही वह समय था, जब मानव गतिविधियों से जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ने की शुरुआत नहीं हुई थी।

ग्रीनहाउस गैसों का रिकॉर्ड स्तर

2024 में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर ने भी नए रिकॉर्ड स्थापित किए हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 422 पार्ट्स प्रति मिलियन (PPM) तक पहुंच गया, जो 2023 से 2.9 PPM अधिक है। वहीं, मीथेन का स्तर 1897 PPB तक पहुंचा, जो 2023 से तीन PPB ज्यादा है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी है।

समुद्रों की बर्फ में कमी

एक और अहम घटना के रूप में, आर्कटिक और अंटार्कटिका के आसपास समुद्री बर्फ का स्तर लगातार दूसरे साल भी “रिकॉर्ड या लगभग रिकॉर्ड निम्नतम स्तर” पर पहुंच गया। इसका सीधा मतलब है कि पृथ्वी का जलवायु संतुलन खतरे में है, और इसके प्रभाव पहले से कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयास

2024 में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। बाढ़, तूफान और अत्यधिक गर्मी ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई। विशेषज्ञों का मानना है कि अब वक्त आ गया है जब देशों को अपनी जलवायु नीतियों को बदलने और क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज के जरिए विकासशील देशों की मदद करने के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे।

विकसित देशों पर जिम्मेदारी है कि वे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए वित्तीय सहायता दें, जिससे ‘ग्लोबल साउथ’ देशों में प्रभावी जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा मिल सके। हालांकि, 2035 तक 300 अरब डॉलर के जलवायु सहायता पैकेज की पेशकश से यह उम्मीद पूरी होती नहीं दिख रही है।

भविष्य के लिए क्या कदम उठाने होंगे?

सतत सम्पदा जलवायु फाउंडेशन के संस्थापक हरजीत सिंह ने कहा कि हमें अब अपनी जलवायु नीतियों में बदलाव लाकर पर्यावरण के अनुकूल उपायों को बढ़ावा देने की जरूरत है। साथ ही, जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) से स्वच्छ ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार न हो सके।

संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान संस्था (IPCC) ने चेतावनी दी है कि अगर 2025 तक उत्सर्जन में भारी कमी नहीं की जाती, तो हम 2100 तक लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तक तापमान वृद्धि देख सकते हैं, जो आने वाले दशकों में खतरनाक हो सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2024 में जलवायु परिवर्तन ने दुनिया को चेतावनी दी है कि अब और अधिक समय बर्बाद करना खतरनाक हो सकता है। वैज्ञानिक और जलवायु कार्यकर्ता इस समय को “आपातकाल” मानते हैं, और उनके मुताबिक, अगर तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती, तो आने वाले दशकों में जलवायु संकट और भी गंभीर हो सकता है।

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