पटना : लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा, जो बिहार और उत्तर भारत के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। यह चार दिवसीय त्योहार है। बुधवार यानी आज छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे खरना कहा जाता है। खरना का दिन विशेष रूप से महिलाएं संकल्प लेकर व्रत करती हैं और यह दिन शुद्धिकरण, श्रद्धा और परिश्रम का प्रतीक होता है। इस दिन के दौरान पूजा में गुड़ की खीर का महत्व बहुत अधिक होता है और इसे विशेष रीति-रिवाजों के साथ तैयार किया जाता है।
आइए जानते हैं खरना की पूजा विधि, इसका महात्म्य और इस दिन किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान के बारे में
खरना का महत्व
खरना का शाब्दिक अर्थ होता है ‘शुद्धिकरण’। यह दिन छठ पर्व की तैयारी का एक अहम हिस्सा होता है, जहां व्रती (व्रत रखने वाले) सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देवता की पूजा करने के लिए खुद को शुद्ध करते हैं। खरना के दिन महिलाएं उपवास रहती हैं और विशेष प्रसाद तैयार करती हैं, जो सूर्य देवता की पूजा का हिस्सा बनता है। इस दिन व्रती अपने संकल्प को लेकर उपवास करती हैं और अपनी श्रद्धा से प्रसाद तैयार करती हैं, जिसे बाद में परिवार और गांव में बांटा जाता है।
खरना पूजा की विधि
खरना के दिन व्रती सुबह से ही तैयारियों में जुट जाते हैं। यह दिन शुद्धता और संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन की पूजा की शुरुआत घर और पूजा स्थल की सफाई से होती है। घर के आंगन, पूजा स्थल, और रसोई को अच्छी तरह से साफ किया जाता है, ताकि पूजा के दौरान कोई अशुद्धता न हो। इस दिन व्रती खास वस्त्र पहनते हैं, जो शुद्ध और स्वच्छ होते हैं।
खरना के प्रसाद में प्रमुख रूप से गुड़ की खीर, गेहूं के आटे की रोटी, फल आदि का प्रयोग होता है। इस दिन गुड़ की खीर को विशेष रूप से मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है। चावल, दूध और गुड़ इन तीन मुख्य सामग्री से तैयार की जाती है। खीर पकाते समय उसमें तुलसी के पत्ते डाले जाते हैं, ताकि प्रसाद की पवित्रता बनी रहे।
खरना का प्रसाद और उसकी विशेषताएं
खरना के प्रसाद का प्रमुख हिस्सा गुड़ की खीर होता है, जो विशेष रूप से तैयार किया जाता है। खीर बनाने के लिए चावल, दूध और गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है, जो साथ में एक मिठास और शक्ति का अहसास कराते हैं। इस खीर को धीमी आंच पर मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है, ताकि यह अधिक पवित्र और स्वादिष्ट बने। इस दिन रोटियां भी बनती हैं, जो गुड़ के साथ खाने के लिए तैयार की जाती हैं। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के फल जैसे केले, संतरे, अनार आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है।
सूर्य देव को अर्घ्य देना
खरना के दिन सूर्यास्त से ठीक पहले व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इस समय पूजा स्थल पर दीप जलाया जाता है और फिर गंगाजल और दूध का मिश्रण पानी में डालकर सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है। अर्घ्य अर्पित करने के बाद सूर्य देवता का धन्यवाद किया जाता है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।
सूर्य देवता को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद का भोग उनके समक्ष अर्पित किया जाता है और फिर यह प्रसाद सभी परिवारजनों और पूजा में सम्मिलित व्यक्तियों में वितरित किया जाता है। इसके बाद व्रती स्वयं भी इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को नैवेद्य कहा जाता है, और इसे ग्रहण करने से शरीर में ऊर्जा और शुद्धता का संचार होता है।
खरना के दिन क्या न करें
खरना के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए:
गंदे हाथों से प्रसाद का संपर्क न करें: अक्सर देखा जाता है कि बच्चे बिना हाथ धोए खरना के प्रसाद को छू लेते हैं, जिससे अशुद्धता हो सकती है। ऐसे प्रसाद का पुनः प्रयोग न करें।
प्रसाद पहले न दें : पूजा में बनने वाला प्रसाद पहले किसी को न दें, जब तक पूजा के सभी अनुष्ठान पूर्ण न हो जाएं।
प्याज और लहसुन का सेवन न करें : छठ पूजा के चार दिनों तक व्रती या परिवार के सदस्य प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करते हैं, क्योंकि इनसे पवित्रता में कमी आ सकती है।
स्वच्छता बनाए रखें : खरना के दिन खासकर सफाई का ध्यान रखें। बिना हाथ धोए किसी भी चीज को न छुएं।
महिलाएं पलंग पर न सोएं : छठ के दौरान महिलाओं को चार दिन तक पलंग पर सोने की अनुमति नहीं होती। उन्हें जमीन पर कपड़ा बिछाकर सोना चाहिए, ताकि वे मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध रहें।
खरना छठ पूजा के महापर्व का एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन होता है, जो श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन की विशेष पूजा विधि, गुड़ की खीर और अन्य प्रसाद, सूर्य देवता की पूजा और शुद्धता के नियमों को पालन करके व्रती अपने परिवार और समाज के लिए सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं। यह दिन न केवल शारीरिक शुद्धता बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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