मेरठ : अगर आप किसी गांव से गुजरते हैं, तो वहां की नालियों और जल निकासी व्यवस्था पर ध्यान जाना स्वाभाविक है। मेरठ जिले का एक ऐसा गांव है, जहां पर नालियां नहीं हैं। नालियां नहीं होने के बावजूद वहां का जल प्रबंधन अद्भुत है। इस गांव का नाम है सिकंदरपुर, जो किला परीक्षितगढ़ ब्लॉक के अंतर्गत आता है। इस गांव ने जल संरक्षण और स्वच्छता के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है।
कैसे काम करता है जल प्रबंधन?
सिकंदरपुर गांव में करीब 2000 की आबादी है, और यहां के लोग ‘जल है तो कल है’ के सिद्धांत को सच्चे अर्थों में अपनाते हैं। गांव में कोई भी नाली नहीं है, लेकिन घरों से निकलने वाला पानी बर्बाद नहीं होता। इसके बजाय, हर घर का इस्तेमाल किया हुआ पानी, जिसे ग्रे वाटर कहा जाता है, उसे सीधे घर के बाहर बनी बगिया या छोटे गार्डन में उपयोग किया जाता है। इससे एक ओर जहां जल का सही तरीके से इस्तेमाल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर यह गांव हरियाली और स्वच्छता से भी भरपूर हो गया है।
लोग समझते हैं जल की महत्ता
डीपीआरओ रेनू श्रीवास्तव ने बताया, “यह गांव एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहां के लोग जल की महत्ता को समझते हैं और अपने दैनिक जीवन में इसे बर्बाद नहीं होने देते।” उनके अनुसार, गांव में शौचालय से निकलने वाला ब्लैक वाटर भी इस कारण से नहीं है कि यहां केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दो गड्ढे वाले शौचालयों का डिज़ाइन अपनाया गया है, जिससे वेस्ट वाटर बाहर नहीं निकलता।
जल संरक्षण को लेकर गांव की जागरूकता
सिकंदरपुर गांव ने जल प्रबंधन और संरक्षण को एक परंपरा के रूप में अपनाया है। यहां के लोग समझते हैं कि जल ही जीवन है और इसे बचाना जरूरी है। ग्राम प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी ने इस कार्य में अहम भूमिका निभाई है। ग्राम प्रधान सुषमा देवी का कहना है, “यह प्रयास पूरे गांव के सहयोग से संभव हो पाया है, और अब हमें पूरे मेरठ मंडल में पहचान मिल रही है।”
किचन गार्डन में उपयोग
सिकंदरपुर के लोग अपने घरों में जल का उपयोग केवल बगियों तक सीमित नहीं रखते, बल्कि किचन गार्डन में भी इसका इस्तेमाल करते हैं। सहायक विकास अधिकारी रामनरेश बताते हैं कि गांव के लोग जो भी वेस्ट वाटर है, उसे किचन गार्डन में उपयोग करते हैं। इस प्रक्रिया के कारण गांव में न केवल पानी बचता है, बल्कि यहां की सब्जियां भी हरी-भरी और ताजगी से भरी रहती हैं।
अन्य गांवों के लिए प्रेरणा
सिकंदरपुर गांव की स्वच्छता और जल प्रबंधन व्यवस्था को देखकर अन्य गांवों के ग्राम प्रधानों को भी प्रेरणा मिल रही है। डीपीआरओ रेनू श्रीवास्तव ने बताया, “यह गांव राज्य स्तर पर भी चर्चा का विषय बन चुका है। हम इसे एक मॉडल गांव के रूप में प्रमोट कर रहे हैं ताकि अन्य गांवों के लोग भी जल संरक्षण के प्रति जागरूक हों।” इस गांव की इस पहल को शासन और प्रशासन दोनों से सराहना मिली है, और अब इसे पूरे जिले के ग्राम प्रधानों को दिखाया जा रहा है, ताकि वे भी इस तरह की व्यवस्था लागू कर सकें।
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