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बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: जीवन साथी चुनने का अधिकार सबको होना चाहिए

by Reeta Rai Sagar
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सेंट्रल डेस्क: बाल विवाह के खिलाफ कई सालों से नियम बनते आ रहे हैं, हालांकि देश के कई जगहों पर इसका असर हुआ भी है। लेकिन अभी भी हमारे देश को इस प्रथा से निजात पाने के लिए, लम्बा सफर तय करना बाकी है।

अभी भी देश में बाल विवाह एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जिसके कई मामले सामने आए हैं और कई राज्यों में शिकायतें दर्ज की गई हैं। मौजूदा कानून बहुत प्रभावी नहीं दिख रहे हैं, यही वजह है कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को लेकर अहम सुनवाई की है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के खिलाफ नहीं जा सकता। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर देकर कहा कि बाल विवाह संविधान द्वारा संरक्षित जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

प्रियंका ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बाल विवाह बच्चों की पसंद, आत्मनिर्भरता, शिक्षा और सेक्सुअल फ्रीडम के अधिकार को छीन लेता है। उन्होंने बताया कि इस कारण बचपन में शादी करने वाली लड़कियां विशेष रूप से प्रभावित होती हैं।

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हर किसी को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है और बाल विवाह उस स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बाल विवाह के खिलाफ मौजूदा कानूनों में खामियां हैं। इसने सुझाव दिया कि विभिन्न समुदायों के लिए एक नई रणनीति विकसित की जानी चाहिए और इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से सहयोग की आवश्यकता है।

कोर्ट ने बाल विवाह को रोकने के लिए अधिकारियों को प्रशिक्षित करने, समुदाय-विशिष्ट रणनीति बनाने और जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया है।

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