सेंट्रल डेस्क : Air Pollution : भारत में वायु प्रदूषण के कारण बच्चों एवं वयस्कों में मौत का जोखिम अधिक बढ़ गया है। मानक स्तर से अधिक वायु प्रदूषण ने लोगों में जानलेवा बीमारियों को बढ़ावा दिया है। इससे फेफड़े और श्वासनली को तेजी से क्षति पहुंचने की संभावना अधिक बढ़ गई है।
Air Pollution : नवजात शिशुओं को सबसे अधिक खतरा
जियोहेल्थ पत्रिका के शोध अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण से होने वाली मौत के जोखिमों में सबसे अधिक पीएम 2.5 के स्तर बढ़ने से बच्चों के मृत्यु प्रतिशत में दो गुना वृद्धि दर्ज की गई है। नवजात शिशुओं में 86 प्रतिशत तक वायु प्रदूषण के कारण मौत की आशंका बढ़ गई है। वहीं 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों को भी इस श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके अलावा यह वयस्कों के श्वसन से संबंधित स्वास्थ्य को भी काफी हद तक प्रभावित करता है।
Air Pollution : रसोईघर एवं घरेलू वायु प्रदूषण का प्रभाव
PM 2.5 के नवजात शिशु में होने वाले मृत्यु के जोखिम के सह संबंधित अध्ययन में रसोईघर एवं घरेलू वायु प्रदूषण को मुख्य रूप से जिम्मेदार पाया गया। जिन घरों में अलग से रसोईघर की व्यवस्था नहीं है, वहां खाना बनाने एवं ईंधन जलाने से जो वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है, वह बच्चों एवं वयस्कों में होने वाले मौत का अधिक उत्तरदायी कारक माना गया।
Air Pollution : कई शहर नहीं कर रहे वायु गुणवत्ता मानकों का पालन
भारत में ऐसे कई शहर हैं, जो वायु की गुणवत्ता को बनाए रखने एवं उसमें प्रदूषण की मात्रा कम करने के उत्तरदायित्व का सही ढंग से वहन नहीं कर पा रहे हैं। विभिन्न जिलों एवं शहरों को यह सुनिश्चित करना होता है कि वह अपने-अपने इलाकों के चौक- चौराहों पर वायु में उपस्थित प्रदूषण एवं धूलकणों को PM (Particulate Matter) के आधार पर दर्शाएं। लेकिन कई शहर ऐसा करने में विफल रहे हैं। वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए केंद्र द्वारा जिलों एवं शहरों को सहायता राशि भी प्रदान की गई थी, जिनमें झारखंड की राजधानी रांची और जमशेदपुर शहर भी इन शहरों में शामिल हैं।
Air Pollution : क्या है वायु गुणवत्ता सूचकांक
वायु गुणवत्ता सूचकांक वह पैमाना है, जिसके आधार पर वायु में प्रदूषण की स्थिति निर्धारित की जाती है। इसका मानक पीएम पर आधारित होता है। पीएम अर्थात पार्टिकुलेट मैटर। पार्टिकुलर मैटर वह स्थिति है जो वायु में कितनी मात्रा में धूलकण या रसायन के रूप में प्रदूषण मौजूद है, इसकी जानकारी देता है। यह पीएम 2.5 से लेकर पीएम 10 तक निश्चित है। पार्टिकुलेट मैटर के अनुसार ही यह तय किया जाता है कि वायु कितनी हानिकारक अथवा प्रदूषण युक्त है। यदि पीएम 2.5 के स्तर तक वायु में प्रदूषण मौजूद है, तो यह बहुत सूक्ष्म कणों द्वारा हमारे शरीर में जाकर फेफड़े एवं अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाता है।
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