सेंट्रल डेस्क : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि जो प्रेमी जोड़े माता-पिता की सहमति के बिना शादी करते हैं, उन्हें पुलिस सुरक्षा का अधिकार नहीं है, जब तक उनके जीवन या स्वतंत्रता को वास्तविक खतरा न हो।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अपनी इच्छा से शादी करने वालों को पुलिस सुरक्षा का अधिकार नहीं है। सुरक्षा केवल तभी दी जा सकती है, जब उनके जीवन या स्वतंत्रता को किसी तरह का खतरा हो। अदालत ने कहा कि ऐसे जोड़ों को समाज का सामना करना सीखना चाहिए और अपने जीवन साथी के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उनके परिवार वाले उनके वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं। कोर्ट ने दस्तावेजों और बयानों की जांच के बाद पाया कि जोड़े को कोई गंभीर खतरा नहीं है, इसलिए याचिका का निपटारा कर दिया।
क्या है कानून?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के तहत वयस्क व्यक्ति अपनी इच्छा से शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालांकि, यह स्वतंत्रता दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना होनी चाहिए।
कोर्ट के अन्य फैसले
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे पहले भी कई मामलों में वयस्कों के स्वेच्छा से विवाह करने के अधिकार की रक्षा की है। उदाहरण के लिए, एक मामले में कोर्ट ने कहा था कि वयस्क व्यक्ति अपनी पसंद के जीवन साथी के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हैं और इस अधिकार में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है।
जानकार बताते हैं कि इस फैसले से यह स्पष्ट है कि वयस्क व्यक्ति अपनी इच्छा से शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। यदि किसी जोड़े को वास्तविक खतरा है, तो वे अदालत से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं, लेकिन बिना किसी ठोस आधार के सुरक्षा की मांग नहीं की जा सकती।