गोरखपुर : भोजपुरी संगम की 181 वीं बइठकी चन्द्रगुप्त वर्मा अकिंचन की अध्यक्षता, सुरेन्द्र कुमार सिंह के मुख्य आतिथ्य एवं धर्मेन्द्र त्रिपाठी के संचालन में बशारतपुर गोरखपुर में सम्पन्न हुई। बइठकी के समीक्षा सत्र में मऊ से पधारे कृष्णदेव घायल के भोजपुरी गजल संग्रह दरद के सोन्हाई की समीक्षा की गई।
इस दौरान वरिष्ठ कवि सुभाष चन्द्र यादव ने कहा कि घायल की गजलें समाज, मानवता, प्रकृति व देश-दुनिया के प्रति जवाबदेही का बखूबी निर्वाह करतीं हैं एवं जेठ की तप्त धरती पर बरखा का पानी गिराकर राहत की सोंधी सुगंध से मानवता को सुवासित करतीं हैं। इनके हृदय में मरुथल की तपन है तो वसंती बयार भी है, सावनी फुहार भी है जो इन्हें एक सफल शब्द चित्रकार बनाता है। सुरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि घायल की गजलें आज के परिवेश में आम आदमी, परिवेश का आम आदमी पर प्रभाव एवं उसपर आम आदमी की प्रतिक्रिया से रूबरू करातीं हैं।
आजमगढ़ से पधारे प्रो. जितेन्द्र कुमार नूर ने कहा कि घायल की गजलें जन संवेदना से जुड़तीं हुईं भूख, गरीबी, राजनैतिक छद्म, पूँजीवाद की मनमानी, नैतिक पतन एवं तार-तार मानवता से पीड़ित आम आदमी की गहन पहचान करातीं हैं। मुकेश आचार्य ने कहा कि घायल की गजलें देश, काल, परिस्थिति पर बेजोड़ पकड़ रखतीं हैं एवं कई दशकों की रचना यात्रा इनमें समाहित है। जीवन के सभी पक्षों पर कवि की बड़ी सूक्ष्म दृष्टि है जिससे कुछ भी ओझल नहीं हुआ है। डॉ. चेतना पाण्डेय ने कहा कि घायल की गजलों में देश-दुनिया के ज्वलंत विषयों का व्यापक समावेश यह प्रमाणित करता है कि भोजपुरी में कितना कुछ या सबकुछ रचा जा सकता है।
बइठकी के काव्य-सत्र में पठित प्रमुख पँक्तियाँ :-
अजय यादव ने संजीदा शुरुआत की –
चार दिन जिनगी क संगवाँ गुजारि के
उड़ि गइला सुगना हो खोतवा उजारि के
राम सुधार सैंथवार ने नसीहत दी –
फागुन महीना ह प्रेम बरसावा
ऊँच-नीच सबके गले से लगावा
अरविन्द अकेला ने फाग रस बरसाया –
लिखि पाँती दुइ-चार, पिया के पठाव तानी गोरी.
राजेश मृदुल ने माँ की ममता को पुकारा –
अपने आँचल क छाँव दअ हमके
घाम से तिलमिला रहल बानी
राम समुझ साँवरा ने सरस प्रस्तुति दी –
ककही से माथ झारिके, ऐना निहारि के
मेला में घूमे जा थऊ, रहिहअ सँभारि के
अवधेश नन्द ने स्तरीय दोहे पढ़े –
महुआ, मधु, मोजरि, मउज, हवें बसंती जोग.
पिउ बिनु भरमित नेहि बा, बिरहिन बढ़त बिजोग.
नर्वदेश्वर सिंह ने वसंत का अभिनन्दन किया –
आइल महीना मधुमास, भोरहिएँ अजोर हो गइल
ठूँठओ में उठता हुमास, भोरहिएँ अजोर हो गइल
डा. फूलचन्द प्रसाद गुप्त ने जुगानी जी को याद किया –
भोजपुरी में नाहीं केहू बाटें जेकर सानी
धन्निभागि धरती पर अइलें, धरती पूत जुगानी
डा. अजय राय अनजान ने अर्थपूर्ण रचना पढ़ी –
कवन रे ठगवा, ठगिनि पे लुभाइल बाटें
हर छन हर पल, नजदीक आइल बाटें
सन्तोष कुमार श्रीवास्तव ने भ्रूण हत्या पर चोट की –
माई रे माई काहें देले मरवाई?
पेटवे में जिनिगी क करेले बिदाई?
सुभाष चन्द्र यादव की रवायती ग़ज़ल ख़ूब रही –
जेतना बिसवास हमरा गीता पर
ओतना हमके कुरान पर बाटें
सुरेन्द्र कुमार सिंह ने काव्य क्रम को अंतिम आयाम दिया –
अब ना चलिहें कउनो बहाना, गुलमिया सुराज कहे खातिर
अब ना चलिहें कउनो बहाना, अन्हरिया बिहान कहे खातिर.
इसके अलावा बइठकी में सृजन गोरखपुरी, अरुण ब्रह्मचारी, रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, वागेश्वरी मिश्र वागीश, प्रदीप मिश्र, दिनेश गोरखपुरी, अखिल मिश्र, नगीना यादव की महत्वपूर्ण रचनात्मक उपस्थिति रही। मेजबानी संयोजक कुमार अभिनीत एवं डॉ.विनीत मिश्र ने की एवं आभार ज्ञापन संस्था संरक्षक इं.राजेश्वर सिंह ने किया।
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