Home » इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: थाने में होने वाली शादियां मान्य नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: थाने में होने वाली शादियां मान्य नहीं

by Rakesh Pandey
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

प्रयागराज : आज कल शादी के कई शॉर्टकट्स निकाले जा चुके हैं। ऐसा ही एक शॉर्टकट तरीका बन गया है पुलिस स्टेशन में शादी। अक्सर हमें ऐसी खबरें सुनने को मिलती रहती हैं। लेकिन बता दें कि पुलिस स्टेशन में शादी अब मान्य नहीं होगी।

इस तरीके में, जब दो लोग एक दूसरे को पुलिस के सामने अपनाते हैं तो इसे विवाह की आधिकारिक मान्यता नहीं दी जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर कड़ी टिप्पणी की है।

हिंदू विवाह में सप्तपदी है अनिवार्य

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि सप्तपदी हिंदू विवाह का अनिवार्य तत्व है। रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुए विवाह को ही कानून की नज़र में वैध विवाह माना जाएगा। अगर वैदिक विधि से शादी संपन्न नहीं कराई गई है तो इस तरह के विवाद कानून की नजर में अवैध रहेंगे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने वाराणसी की स्मृति सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह की वैधता को स्थापित करने के लिए सप्तपदी एक अनिवार्य तत्व है।

पुलिस स्टेशन में शादी अब होगी अमान्य

इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिविल और पारिवारिक विवादों के मामलों की जानकार अधिवक्ता अभिलाषा परिहार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हिंदू विवाह के तरीकों में से एक तरीका, जिसमें सात फेरे, यानी कि सप्तपदी को शामिल नहीं किया जाता, कानूनी रूप से वैध नहीं होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के डिसीजन के बात यह स्पष्ट है कि पुलिस स्टेशन में की गई शादियां अमान्य रहेंगी।

अधिकतर आते हैं ऐसे मामले

कई बार लड़के-लड़कियों के अफेयर के मामले में पुलिसकर्मी द्वारा थाने में ही उनकी शादियां करा दी जाती हैं। इसमें थाने में बने मंदिर में देवी-देवताओं को साक्षी मानकर लड़के से लड़की की मांग में सिंदूर लगवा देते हैं, और एक दूसरे को माला पहनवा देते हैं।

इस तरह की शादियों में न तो फेरे होते हैं, न ही सप्तपदी की पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है। ऐसे में थाने में होने वाली शादियों की वैधता पर अब सवाल उठेंगे।उन्हें विधिक रूप से मान्य नहीं माना जाएगा।

कोर्ट में इस मुद्दे पर उठा सवाल

इस घटना में, स्मृति सिंह (जिन्हें मौसमी सिंह के नाम से भी जाना जाता है) ने पति सत्यम सिंह पर तलाक दिए बिना दूसरा विवाह करने का आरोप लगाया था। इसके बाद वाराणसी जिला अदालत में परिवाद दायर किया।

कोर्ट ने इस परिवाद को सुनने के बाद यह निर्णय दिया कि इस मामले में सप्तपदी (सात फेरे) का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, और विवाह समारोह की पूरी प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई थी, जिससे विवाह को कानूनी रूप से वैध नहीं माना जा सकता है।

इस परिवाद और समन को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। इसमें याची का कहना था कि उसका विवाह 5 जून 2017 को सत्यम सिंह के साथ हुआ था लेकिन विवादों के कारण याची ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और मारपीट आदि का मुकदमा दर्ज कराया था।

क्या था आरोप?

आरोप यह भी लगाया गया कि ससुराल वालों ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया है। पुलिस ने पति व ससुराल वालों के खिलाफ अदालत में चार्ज शीट दाखिल की है।

इसी बीच पति और ससुराल वालों की ओर से पुलिस अधिकारियों को एक शिकायती पत्र देकर कहा गया कि याची ने पहले पति से तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर लिया है।

इस शिकायत की सीओ सदर मिर्जापुर ने जांच की और उसे झूठा करार देते हुए रिपोर्ट लगा दी। इसके बाद याची के पति ने जिला न्यायालय वाराणसी में परिवाद दाखिल किया।

अदालत ने इस परिवाद पर याची को सम्मन जारी किया था। जिसे चुनौती देते हुए कहा गया कि याची द्वारा दूसरा विवाह करने का आरोप सरासर गलत है।

READ ALSO : क्या झारखंड में भी लागू होगी जाति आधारित जनगणना, मुख्यमंत्री ने कह दी बड़ी बात

इसी सप्ताह हुआ जिक्र

इसी में सप्तपदी यानी सात फेरों का जिक्र कोर्ट में आया। कोर्ट ने कहा कि यदि विवाह समारोह की यह प्रक्रिया पूरी नहीं है तो कानून की नजर में यह वैध विवाह नहीं होगा। वर्तमान मामले में इसका कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सिर्फ याची को परेशान करने के उद्देश्य से एक दूषित न्यायिक प्रक्रिया शुरू की गई है। जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसी आधार पर न्यायालय ने 21 अप्रैल 2022 को याची के विरुद्ध जारी समन आदेश और परिवाद की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है।

Related Articles