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केंद्र ने श्रीहरिकोटा में तीसरे लॉन्च पैड की स्थापना को दी मंजूरी

भारतीय अंतरिक्ष परिवहन प्रणालियां पूर्ण रूप से दो लांच पैड पर निर्भर हैं। पहला लॉन्च पैड (FLP) और दूसरा लॉन्च पैड (SLP)। FLP को PSLV के लिए 30 साल पहले लाया गया था और यह PSLV और SSLV के लिए लॉन्च सपोर्ट साबित हुई।

by Reeta Rai Sagar
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सेंट्रल डेस्कः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में इसरो के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तीसरे लॉन्च पैड (टीएलपी) की स्थापना को मंजूरी दे दी। तृतीय प्रमोचन पैड परियोजना में इसरो के नेक्स्ट जेनेरेशन लांच व्हीकल्स के लिए श्रीहरिकोटा में प्रक्षेपण अवसंरचना की स्थापना और श्रीहरिकोटा में दूसरे प्रमोचन पैड के लिए स्टैंडबाई लॉन्च पैड के रूप में सहायता करने की परिकल्पना की गई है। यह भविष्य के भारतीय मानव अंतरिक्ष यान मिशनों के लिए लांच कैपिसिटी को भी बढ़ाएगा।

राष्ट्रीय महत्व की इस परियोजना के लिए टीएलपी को ऐसे डिज़ाइन किया गया है जो यथासंभव यूनिवर्सल और अनुकूलनीय हो जो न केवल एनजीएलवी बल्कि सेमीक्रायोजेनिक चरण के साथ-साथ एनजीएलवी के बढ़े हुए कंफीगरेशन के साथ एलवीएम 3 वाहनों का भी समर्थन कर सके। यह पहले लॉन्च पैड स्थापित करने और मौजूदा लॉन्च कॉम्प्लेक्स सुविधाओं को अधिकतम रूप से साझा करने में इसरो के अनुभव का पूरी तरह से उपयोग करने में समर्थ होगा।

टीएलपी को 4 साल की अवधि के भीतर स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 3,984.86 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की जाएगी। इसमें लॉन्च पैड और संबंधित सुविधाओं की स्थापना भी शामिल है। यह परियोजना हायर लॉन्च फ्रीक्वेंसी और मानव अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन शुरू करने की राष्ट्रीय क्षमता को सक्षम करके भारतीय अंतरिक्ष के इकोसिस्टम को बढ़ावा देगी।

वर्तमान स्थिति के अनुसार, भारतीय अंतरिक्ष परिवहन प्रणालियां पूर्ण रूप से दो लांच पैड पर निर्भर हैं। पहला लॉन्च पैड (FLP) और दूसरा लॉन्च पैड (SLP)। FLP को PSLV के लिए 30 साल पहले लाया गया था और यह PSLV और SSLV के लिए लॉन्च सपोर्ट साबित हुई। SLP मुख्य रूप से GSLV और LVM3 के लिए स्थापित किया गया था और PSLV के लिए स्टैंडबाय के रूप में भी कार्य करता है।

SLP लगभग 20 वर्षों से शुरू है और चंद्रयान-3 मिशन सहित राष्ट्रीय मिशनों के साथ-साथ पीएसएलवी/एलवीएम 3 के कुछ मिशनों में कार्यरत है। 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) सहित अमृत काल के दौरान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को विस्तारित करने की योजना है।

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