चाईबासा : झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला जेल में हुई एक विचाराधीन कैदी मुरली लागुरी की मौत के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को 7 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। आयोग ने इस मामले में जेल प्रशासन की लापरवाही को उजागर करते हुए राज्य सरकार को छह सप्ताह के भीतर मुआवजा देने और इसकी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।
बता दें कि 30 वर्षीय विचाराधीन कैदी मुरली लागुरी 9 सितंबर 2022 को पश्चिम सिंहभूम के चाईबासा मंडल कारा में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी।
परिजनों ने लगाया था कैदी की पिटाई का आरोप
जेल प्रशासन के अनुसार, उसने जेल के वार्ड नंबर 2 की सीढ़ी से कूदकर आत्महत्या की थी।मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया था कि मुरली को दो दिनों तक जेलर और जेल कर्मियों ने बेरहमी से पीटा था और सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया था। घटना के बाद इस मामले को चक्रधरपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता बैरम खान ने मामले की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से इसकी शिकायत की। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच के बाद पाया कि जेल प्रशासन की लापरवाही के कारण मुरली की मृत्यु हुई।
मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को दी थी कारण बताओ नोटिस
आयोग ने 13 फरवरी 2024 को झारखंड सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि मृतक के परिवार को मुआवजा क्यों न दिया जाए। झारखंड सरकार की ओर से 18 जून 2024 को एक रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य सरकार ने मुआवजा देने की मंजूरी दे दी है। हालांकि, पुलिस विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जांच के दौरान जेल अधिकारियों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुए। आयोग ने सभी रिपोर्टों की समीक्षा के बाद 24 फरवरी 2025 को अपने आदेश में कहा कि जब कोई व्यक्ति न्यायिक हिरासत में होता है, तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है।
आयोग के फैसले से परिजन संतुष्ट
यदि जेल प्रशासन की लापरवाही से किसी कैदी की मौत होती है, तो राज्य सरकार को इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।आयोग ने झारखंड सरकार को निर्देश दिया कि वह मुरली लागुरी के परिजनों को 7 लाख रुपये का मुआवजा छह सप्ताह के भीतर दे और इस संबंध में आयोग को रिपोर्ट सौंपे। इस घटना के बाद मृतक मुरली लागुरी के भाई रूप सिंह लागुरी ने आयोग के इस फैसले का स्वागत किया है। उसने कहा कि उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद है। उन्होंने दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। यह मामला न्यायिक हिरासत में कैदियों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर एक अहम मिसाल साबित हो सकता है। आयोग के इस फैसले से अन्य मामलों में भी पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।