फीचर डेस्क : चार दिन तक चलने वाले लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की आज (मंगलवार) से शुरुआत हो गई। छठ पर्व से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। हालांकि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ महापर्व प्रमुखता के साथ मनाया जाता है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत हो जाती है। छठ के पहले दिन नहाय-खाय की परंपरा होती है। इस दिन व्रती प्रात: स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करते है। नहाय-खाय के साथ शुरू होकर यह पर्व ऊषा अर्घ्य के साथ समाप्त होता है। इस महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है। छठ का व्रत महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं।
क्यों मनाया जाता है छठ पर्व
शास्त्रों के अनुसार, षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से होता है, इसलिए सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है।
नहाय-खाय का महात्म्य
नहाय-खाय के दिन व्रती तालाब, नदी या घर पर ही स्नान करते हैं। छठ पूजा में नहाय-खाय का विशेष महात्म्य होता है। इसके साथ ही पर्व की शुरुआत होती है। नहाय-खाय के दिन व्रती सात्विक आहार ग्रहण कर खुद को पावन और पवित्र छठ पूजा के लिए तैयार करते हैं। आमतौर पर चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। भोजन मिट्टी या कांसे के बर्तनों में पकाया जाता है और उसे लकड़ी या गोबर के उपलों पर पकाना पारंपरिक होता है। व्रती इसे शुद्धता के साथ ग्रहण करते हैं और उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन खरना
दूसरे दिन को ‘लोहंडा-खरना’ कहा जाता है। इस दिन लोग उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन करते हैं। खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता है। हालांकि अधिकतर व्रती इसे अरवा चावल, दूध और गुड़ के साथ बनाते हैं।
तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य
छठ पर्व में तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान ‘ठेकुवा’ और मौसमी फल चढ़ाया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है।
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए (उदयाचलगामी) सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चा दूध और प्रसाद ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है।
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