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छठ पूजा 2024: आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी व्रती

सूर्य देव को अर्घ्य देने से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और विशेष रूप से स्वास्थ्य संबंधित कई कठिनाइयां दूर होती हैं।

by Rakesh Pandey
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रांची : लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज यानी गुरुवार को तीसरा दिन है और इस दिन विशेष रूप से अस्ताचलगामी अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य) दिया जाता है। नहाय-खाय और खरना के बाद यह दिन इस महापर्व की महत्वपूर्ण पूजा प्रक्रिया का हिस्सा है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है और साथ ही डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा का यह दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह जीवन के हर पहलू में सुख, समृद्धि और संतान सुख की मनोकामना के लिए विशेष रूप से समर्पित है।

क्या है छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का महत्व अत्यधिक है और यह खासकर सूर्य देवता की पूजा से जुड़ी हुई है। सूर्य देव के प्रति श्रद्धा और भक्ति के रूप में इसे मनाया जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में सूर्य देव को जीवनदायिनी माना जाता है। सूर्य देव की उपासना से व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह पूजा न केवल सामूहिक सुख की प्राप्ति के लिए होती है, बल्कि परिवार के सुख और संतानों की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

इसके अलावा मान्यता है कि सूर्य देव को अर्घ्य देने से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति और विशेष रूप से स्वास्थ्य संबंधी कई कठिनाइयां दूर होती हैं। मान्यता है कि सूर्य की अंतिम किरण के साथ पूजा करने से जीवन में समृद्धि, सेहत और संतोष की प्राप्ति होती है।

छठ पूजा के तीसरे दिन की विधि : प्रथम अर्घ्य

छठ पूजा के तीसरे दिन को ‘संध्या या प्रथम अर्घ्य’ कहा जाता है। यह पूजा विशेष रूप से सूर्यास्त के समय की जाती है, जब सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार संध्याकाल में सूर्य की आखिरी किरण से उनकी पत्नी प्रत्यूषा जुड़ी हुई हैं। इसलिए इस दिन सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है और सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व होता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं व्रत रखती हैं और संतान सुख की प्राप्ति के लिए सूर्य देव को दूध और जल अर्पित करती हैं।

पूजा की शुरुआत सुबह से ही होती है। व्रती महिलाएं पूजा की सामग्री तैयार करती हैं, जिसमें ठेकुआ, चावल के लड्डू, फल, फूल आदि शामिल होते हैं। इन पूजन सामग्री को बांस की बनी टोकरी में सजाया जाता है और इसके साथ नारियल तथा पांच प्रकार के फल भी रखे जाते हैं। यह टोकरी व्रती के घर से छठ घाट तक जाती है, जहां सूर्य देव की पूजा की जाती है।

संध्या अर्घ्य देने की प्रक्रिया

नदी या तालाब तक यात्रा : शाम के समय परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने घरों से नदी, तालाब या सरोवर के किनारे स्थित छठ घाट की ओर रुख करते हैं। इस यात्रा के दौरान महिलाएं पारंपरिक छठ गीत गाती हैं, जो पूजा की भावना को और अधिक प्रगाढ़ करती हैं।

संध्या अर्घ्य देना : छठ घाट पर पहुंचने के बाद, व्रती महिलाएं सूर्य देव की ओर मुख करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इस दौरान दूध और जल सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही पांच बार सूर्य देव के चारों ओर परिक्रमा की जाती है।

घाट से लौटना : अर्घ्य देने के बाद सभी लोग अपने घरों की ओर लौटते हैं और रास्ते में छठ माता के गीत गाए जाते हैं। घर लौटने के बाद रात्रि में परिवार के सदस्य पूजा का प्रसाद ग्रहण करते हैं और पूरे परिवार की समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कई स्थानों पर व्रती और परिवार के सदस्य घाट पर ही रतजगा करते हैं।

संध्या अर्घ्य का समय

हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल 7 नवंबर को सूर्योदय प्रातः 06:42 बजे होगा जबकि सूर्यास्त शाम 05:48 बजे होगा। छठ पूजा के इस दिन सूर्यास्त के समय जो कि 5:48 बजे है, सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

डूबते सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है

डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे एक गहरी पौराणिक और ज्योतिषीय मान्यता है। माना जाता है कि सूर्य देव की अंतिम किरण के साथ प्रत्यूषा का वास होता है और उन्हें अर्घ्य अर्पित करने से जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। यह समय विशेष रूप से उन मुसीबतों और कठिनाइयों को दूर करने का होता है जो व्यक्ति के जीवन में आए हों। इसके अलावा, सूर्य के अस्त होते समय की पूजा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।

छठ पूजा की पौराणिक कथा

एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियंवद के पास संतान नहीं थी और वह इस कारण बहुत दुखी थे। तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी, जिसके परिणामस्वरूप उनकी पत्नी मालिनी को पुत्र प्राप्त हुआ लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा प्रियंवद ने पुत्र के मृत शरीर को लेकर श्मशान जाने की योजना बनाई, और उसी समय ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं। देवसेना ने राजा को बताया कि वह छठे अंश से उत्पन्न हुईं हैं और उन्हें पूजा करने से संतान सुख प्राप्त होता है। इस पूजा के कारण राजा प्रियंवद को संतान सुख प्राप्त हुआ। तब से यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की जाने लगी।

छठ पूजा का आयोजन सूर्य देव की उपासना के साथ-साथ जीवन के हर पहलू को समृद्ध बनाने के लिए किया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे जुड़ी मान्यताएं और कथाएं हमें जीवन के महत्व, परिवार के सुख और संतानों की सुरक्षा की महत्वपूर्ण सीख देती हैं।

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