फीचर डेस्क : देशभर में मानसून का असर दिख रहा है, और खासतौर पर पहाड़ी इलाकों में बादल फटना (Cloudburst) जानलेवा साबित हो रहा है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में बादल फटने की घटना में अब तक 13 लोगों की मौत, 5 घायल और 29 लोग लापता हो चुके हैं। बादल फटना एक अत्यंत तीव्र वर्षा की घटना है जिसमें सीमित क्षेत्र में बहुत कम समय में भारी जलवर्षा होती है। यह घटना बाढ़, भूस्खलन और भारी जनहानि का कारण बनती है।
बादल फटना और भारी बारिश में क्या अंतर है?
बारिश बादल से गिरने वाला संघनित पानी है जबकि बादल फटना अचानक होने वाली भारी बारिश है । प्रति घंटे 100 मिमी से अधिक बारिश को बादल फटना कहते हैं। बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन यह काफी अप्रत्याशित रूप से, बहुत अचानक और काफी भीगने वाली होती है।
Cloudburst : कब और क्यों फटते हैं बादल
समय :
दोपहर और रात के समय, जब वातावरण में नमी और गर्मी दोनों अत्यधिक होती हैं।
कारण :
घने बादल पहाड़ों से टकरा कर रुक जाते हैं और वहीं भारी बारिश होने लगती है।
गर्म और नम हवाएं तेजी से ऊपर उठती हैं, जिससे बादलों में जलवाष्प अधिक मात्रा में इकट्ठा होता है और अचानक गिरता है।
बादलों का आपस में टकराना भी बड़ा कारण है।
पेड़-पौधों की कटाई और हरियाली में कमी से भी यह घटना बढ़ती है।
जलवायु परिवर्तन और लगातार बढ़ते तापमान भी बादल फटने की घटनाओं में इजाफा कर रहे हैं।
कितनी होती है क्षति
मानव जीवन का नुकसान : 10-5000 तक जानें जा सकती हैं, जैसे केदारनाथ आपदा (2013) में हुआ।
संपत्ति का नुकसान : घर, सड़क, पुल, बिजली व्यवस्था आदि तबाह हो जाते हैं।
भूस्खलन और बाढ़ : पहाड़ी इलाकों में मिट्टी और पत्थर के साथ पानी नीचे की ओर बहता है, जिससे पूरे गांव बह सकते हैं।
Cloudburst : कैसे करें बचाव
मौसम विभाग (IMD) की चेतावनियों पर ध्यान दें और संवेदनशील इलाकों से समय पर हट जाएं।
ढलान वाले इलाकों में मजबूत निर्माण करें या इससे बचें।
जल निकासी की उचित व्यवस्था करें, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में।
भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में बारिश के दौरान न जाएं।
स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी अलर्ट को गंभीरता से लें और सुरक्षित स्थान पर शरण लें।
गांव और कस्बों में मुनादी या अलर्ट सिस्टम को सक्रिय रखा जाए।
भारत में बादल फटने की प्रमुख घटनाएं
वर्ष | स्थान | हानि |
---|---|---|
1998 | मालपा, उत्तराखंड | ~225 मौतें (60 कैलाश यात्री सहित) |
2004 | बद्रीनाथ | 17 मौतें |
2005 | मुंबई | सैकड़ों मौतें |
2013 | केदारनाथ | 5000+ मौतें |
2025 | मंडी, हिमाचल | अब तक 13 मौतें, 29 लापता |
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