रांची : कभी राजनीति से दूरी बनाने वाले, स्केचिंग और पढ़ाई में खोए रहने वाले हेमंत सोरेन आज झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केन्द्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो चुके हैं। दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेटे हेमंत ने झामुमो के 13वें महाधिवेशन में पार्टी की कमान पूरी तरह से अपने हाथों में ले ली है।
झामुमो के इतिहास में यह बदलाव केवल पद का नहीं, बल्कि नेतृत्व की सोच और राजनीतिक शैली का प्रतीक है। शिबू सोरेन अब पार्टी के ‘संस्थापक संरक्षक’ के रूप में मार्गदर्शक बने रहेंगे, जबकि पार्टी का भविष्य अब हेमंत के कंधों पर है।
राजनीति से दूरी, स्केचिंग में दिलचस्पी
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हेमंत सोरेन का सियासत में आने का कोई इरादा नहीं था। कला के प्रति लगाव और विदेश जाकर पढ़ाई की ख्वाहिशें मन में थीं। लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों और राजनीतिक विरासत ने उन्हें मोर्चे पर ला खड़ा किया।
दुर्गा सोरेन की असमय मृत्यु, राजनीति में टर्निंग पॉइंट
2009 में बड़े भाई दुर्गा सोरेन के आकस्मिक निधन के बाद पार्टी में एक खालीपन पैदा हो गया। पिता शिबू सोरेन और झामुमो दोनों को हेमंत की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने पहली बार 2009 में दुमका सीट से जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कभी भाजपा सहयोगी, कभी विपक्ष के अगुआ
हेमंत ने झारखंड की राजनीति में भाजपा के साथ मिलकर दो बार सरकार बनाई, लेकिन 2013 में कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 2019 में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटे। 2024 में उन्होंने झामुमो को झारखंड के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत दिलाई।
हेमंत युग की शुरुआत
झामुमो अब दिशोम गुरु शिबू सोरेन के प्रभाव से आगे निकलकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नए युग में प्रवेश कर चुका है। पार्टी के भीतर भी पीढ़ीगत बदलाव दिखने लगे हैं और आदिवासी जनमानस हेमंत को अपने नेता के रूप में स्थापित कर चुका है।
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