जम्मू : जम्मू-कश्मीर के जम्मू जिले के घरोत्रा निवासी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के जवान मुनीर अहमद ने अपनी पाकिस्तानी पत्नी मीनल खान से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शादी की थी। इस मामले में CRPF ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया है, जबकि मुनीर का कहना है कि उन्होंने विभाग को सूचित किया था। वह हाई कोर्ट में न्याय की अपील करेंगे।
शादी की प्रक्रिया और विभाग को सूचित करना
मुनीर अहमद ने बताया कि उन्होंने दिसंबर 2022 में विभाग से विदेशी नागरिक से विवाह की अनुमति मांगी थी। हालांकि, अनुमति में देरी के कारण 24 मई 2024 को उन्होंने मीनल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शादी की। शादी के बाद, उन्होंने विभाग को सभी आवश्यक दस्तावेज़, जैसे विवाह निमंत्रण, स्थान विवरण और मीनल का वीज़ा जानकारी, प्रस्तुत की। उनका कहना है कि उन्होंने विभाग को सूचित किया था और सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया था।
CRPF की बर्खास्तगी और आरोप
CRPF ने 3 मई 2025 को मुनीर अहमद को सेवा से बर्खास्त कर दिया। विभाग का कहना है कि मुनीर ने अपनी शादी को छिपाया और एक पाकिस्तानी नागरिक को भारत में अवैध रूप से रखा, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना गया। मीनल को 30 अप्रैल 2025 को अटारी बॉर्डर पर निर्वासन के लिए ले जाया गया, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश ने इसे रोक दिया।
मुनीर की अपील और न्याय की मांग
मुनीर अहमद ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से न्याय की अपील की है। उन्होंने कहा, ‘मेरे पास सबूत हैं। मैंने विभाग को सूचित किया था। अचानक यह सब हो रहा है। पहले वीज़ा को लेकर, और अब मेरी नौकरी को लेकर। हम संकट में हैं। इसलिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से न्याय की अपील करते हैं’।
मुनीर ने यह भी कहा कि मीनल उनके मामा की बेटी हैं, जो 1947 में विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए थे। उनकी शादी ऑनलाइन हुई थी और यह किसी सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्रेम कहानी का परिणाम नहीं था।
हाई कोर्ट की स्थगन आदेश
मीनल खान ने 28 फरवरी 2025 को जम्मू-कश्मीर में 15 दिन के वीज़ा पर प्रवेश किया था। उन्होंने दीर्घकालिक वीज़ा के लिए आवेदन किया था, लेकिन विभाग को इस बारे में सूचित नहीं किया गया था। 30 अप्रैल 2025 को अटारी बॉर्डर पर निर्वासन के लिए ले जाने के बाद, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2025 को एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें मीनल के निर्वासन पर रोक लगा दी गई।
यह मामला विभागीय प्रक्रियाओं, सुरक्षा चिंताओं और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है। मुनीर अहमद की अपील और हाई कोर्ट के आदेश से यह स्पष्ट होता है कि इस मामले में कानूनी और संवैधानिक पहलुओं की गहरी समीक्षा की आवश्यकता है।