नई दिल्ली: भारत की आर्थिक विकास दर में आई गिरावट ने मोदी सरकार के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। जुलाई-सितंबर तिमाही में GDP (सकल घरेलू उत्पाद) की विकास दर घटकर 5.4% रह गई है। यह आंकड़ा लगभग दो वर्षों में सबसे धीमी रफ्तार को दर्शाता है। इस स्थिति ने सरकार के आर्थिक सुधारों और वैश्विक मंच पर भारत को तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में पेश करने की योजनाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
विकास दर में गिरावट: क्या हैं मुख्य कारण?
- कमजोर मांग और महंगाई का प्रभाव
भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती की बड़ी वजह घरेलू मांग में गिरावट और महंगाई की ऊंची दर है। परिवारों की खर्च करने की क्षमता घटने से उपभोक्ता बाजार में ठहराव देखा गया है। - वैश्विक अनिश्चितता
वैश्विक स्तर पर बढ़ती ब्याज दरें और आर्थिक अनिश्चितताओं ने भारतीय बाजार पर दबाव बढ़ाया है। प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों जैसे चीन, जापान और यूरोपीय देशों की धीमी वृद्धि दर का असर भारत पर भी पड़ा है। - मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गिरावट
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में विकास दर 7% से घटकर 2.2% रह गई है। यह गिरावट न केवल घरेलू उत्पादन पर बल्कि रोजगार के अवसरों पर भी असर डाल रही है।
कृषि क्षेत्र और सेवा उद्योग में स्थिति
हालांकि कृषि क्षेत्र ने अच्छे मानसून और खरीफ की बुवाई के चलते बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन यह पूरे आर्थिक विकास को संतुलित करने में सक्षम नहीं हो पाया। सेवा क्षेत्र में भी वृद्धि हुई है, लेकिन यह उम्मीद से कम रही।
बढ़ती बेरोजगारी: एक और चुनौती
विकास दर में गिरावट का सीधा असर रोजगार सृजन पर पड़ा है। खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सीमित हो रहे हैं। बड़े और मंझोले उद्योग भी इस दबाव को झेल रहे हैं, जिससे युवाओं में निराशा बढ़ रही है।
विशेषज्ञों की राय
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने इस स्थिति को “निराशाजनक” बताया है। उनका मानना है कि यह गिरावट घरेलू और वैश्विक चुनौतियों का परिणाम है। उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट और चीन जैसे देशों से सस्ते आयात को इसकी प्रमुख वजह बताया।
कारोबारी जगत की प्रतिक्रिया
- कॉर्पोरेट प्रदर्शन में गिरावट
देश की प्रमुख कंपनियों जैसे मारुति सुजुकी और हिंदुस्तान यूनिलीवर के परिणाम उम्मीद से कम रहे हैं। इन कंपनियों ने इसके पीछे उपभोक्ता मांग में गिरावट को जिम्मेदार ठहराया है। - बैंकिंग क्षेत्र का दृष्टिकोण
HDFC बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने GDP विकास दर के अनुमान को घटाकर 6.5% कर दिया है। बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी यह स्वीकार किया है कि विकास दर में सुधार की संभावना है, लेकिन यह धीमी गति से होगी।
सरकार की नीतियों पर सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2030 तक भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की योजना के सामने यह झटका एक बड़ी चुनौती है। सरकार ने हाल ही में पूंजीगत व्यय में वृद्धि और ग्रामीण मांग को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी, लेकिन यह सुधार अब तक अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है।
आशा की किरण: क्या है आगे का रास्ता?
- त्योहारी सीजन का असर
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि त्योहारी सीजन और शादियों के मौसम में उपभोक्ता खर्च में वृद्धि हो सकती है, जो आर्थिक गतिविधियों को गति देगा। - सरकारी खर्च में वृद्धि
सरकारी पूंजीगत व्यय (capex) में तेजी से सुधार की संभावना है, जिससे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को बल मिलेगा। - कृषि क्षेत्र का योगदान
अच्छे मानसून के चलते ग्रामीण मांग में सुधार और कृषि विकास में तेजी आने की उम्मीद है।
आर्थिक सुधार के संकेत
कुछ हाई-फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर्स, जैसे मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं के लिए परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI), ऑटो बिक्री और हवाई यात्री ट्रैफिक में स्थिरता के संकेत मिले हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक और घरेलू चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं।
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