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Defamation case: सुप्रीम कोर्ट का आदेश, शिवराज सिंह चौहान को व्यक्तिगत उपस्थिति से रहेगी छूट

शिवराज सिंह सहित तीन नेताओं पर आरोप है कि इन लोगों ने 2021 के मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का विरोध करने के आरोप में दुर्भावनापूर्ण, झूठा और मानहानिकारक अभियान चलाया।

by Reeta Rai Sagar
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सेंट्रल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने पहले के आदेश को कायम रखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक आपराधिक मानहानि मामले में ट्रायल कोर्ट के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दी है। यह मामला कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा की ओर से शिवराज सिंह चौहान, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राज्य अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ दायर किया गया था।

राजनीतिक लाभ के लिए दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाने का आरोप
वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने आरोप लगाया कि तीनों नेताओं ने 2021 के मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का विरोध करने के आरोप में उनके खिलाफ संयुक्त, दुर्भावनापूर्ण, झूठा और मानहानिकारक अभियान चलाया ताकि राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की एक बेंच ने चौहान और अन्य दो BJP नेताओं की याचिका पर सुनवाई 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को दी गई है चुनौती
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में चौहान की उस अपील की सुनवाई कर रहा था, जिसमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के 25 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मानहानि मामले को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया गया था। चौहान की ओर से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने पक्ष रखा, जबकि तन्खा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अधिवक्ता सुमेर सोधी ने प्रतिनिधित्व किया।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने पहले बीजेपी नेताओं के खिलाफ मानहानि मामले में जमानत योग्य वारंटों के निष्पादन पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने तन्खा से चौहान और अन्य BJP नेताओं की अपील पर जवाब मांगा था। जेठमलानी ने कहा था कि तन्खा द्वारा की गई शिकायत में उल्लेखित बयान सदन की कार्यवाही में किए गए थे और ये संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत संरक्षित हैं।

क्या है संविधान का अनुच्छेद 194(2)
संविधान का अनुच्छेद 194(2) कहता है, किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य, किसी विधानमंडल या उसकी समिति में कही गई किसी बात या दी गई किसी वोट के संबंध में, और उस विधानमंडल द्वारा या उसके अधिकार क्षेत्र में प्रकाशित किसी रिपोर्ट, पत्र, वोट या कार्यवाही के संबंध में किसी भी व्यक्ति को अदालत में कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं ठहरा सकता।

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