सेंट्रल डेस्क : डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के बाद से पाकिस्तान का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व में घबराहट का माहौल है। ट्रंप प्रशासन इस बार पाकिस्तान को कोई खास तवज्जो नहीं देने वाला है, जिससे इस्लामाबाद की चिंताएं बढ़ गई हैं। पिछली बार जब ट्रंप राष्ट्रपति थे, तब अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था, और पाकिस्तान उसकी रणनीति का अहम हिस्सा था। लेकिन इस बार स्थिति अलग है। ट्रंप की प्राथमिकता नहीं है। पाकिस्तान ट्रंप ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ समझौता कर लिया था, जिसके तहत अगस्त 2021 में अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से बाहर निकल गई। अब ट्रंप की प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं। उनका मुख्य फोकस ईरान (Iran) और उसकी न्यूक्लियर पॉलिसी (Nuclear Policy) पर है। उन्होंने ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों को और कड़ा कर दिया है। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में आतंकवाद पर नजर रखेगा, लेकिन इसमें पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं दिख रही।
भारत के खिलाफ कोई साजिश नहीं हो रही सफल
ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान को लेकर सख्त नजर आ रहा है। हाल ही में मोदी-ट्रंप की मुलाकात (Modi-Trump Meeting) के बाद जारी भारत-अमेरिका के संयुक्त बयान ने पाकिस्तान को और बेचैन कर दिया है। इस बयान में सीमा पार आतंकवाद (Cross-border Terrorism) का जिक्र किया गया और पाकिस्तान से 26/11 मुंबई हमले और पठानकोट हमले के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने की बात कही गई। पाकिस्तान ने इस बयान पर नाराजगी जताते हुए इसे एकतरफा और भ्रामक बताया, लेकिन अमेरिका ने उसकी चिंता को खास तवज्जो नहीं दी। पन्नू मामला (Pannun Case) और कनाडा में निज्जर हत्याकांड (Nijjar Killing in Canada) जैसे मुद्दे भी अब वैश्विक मंच पर खास चर्चा में नहीं हैं, जिससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है।
पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर झटका
अमेरिका अब भारत के पक्ष में खड़ा दिख रहा है और पाकिस्तान के आरोपों को गंभीरता से नहीं ले रहा। इससे पाकिस्तान की रणनीतियां कमजोर हो गई हैं। ट्रंप की वापसी के बाद यह साफ हो गया है कि अब अमेरिका पाकिस्तान को अपनी विदेश नीति का अहम हिस्सा नहीं बनाएगा। इससे भारत-अमेरिका की दोस्ती (India-US Friendship) और मजबूत होगी और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्थिति और कमजोर हो सकती है।