गढ़वा: कभी नक्सल गतिविधियों का गढ़ माना जाने वाला गढ़वा जिले का भंडरिया प्रखंड अब खेती की मिसाल बनता जा रहा है। जहां पहले गोलियों की गूंज और विस्फोटों की धमक सुनाई देती थी, वहां अब किसानों की मेहनत की फसलें लहलहा रही हैं। यही नहीं, बूढ़ा पहाड़, जो कभी माओवादियों का ठिकाना था, आज खेती-बाड़ी की खुशबू से महक रहा है।
तरबूज की खेती से हदीस की किस्मत बदली
किसानों ने उस समय तरबूज की खेती का फैसला लिया जब अधिकतर लोग इसे जोखिम भरा मानते थे। लेकिन नई तकनीक, जैविक खाद, ड्रीप सिंचाई प्रणाली और प्लास्टिक मल्चिंग जैसी आधुनिक विधियों को अपनाकर खेती को व्यवसाय में बदल दिया। एक किसान ने बताया कि एक सीजन में ही वे 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी की है।
परंपरागत खेती को छोड़ कर नई राह पर किसान
गढ़वा के किसान अब परंपरागत खेती से आगे बढ़कर उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाने लगे हैं। कृषि विभाग, इंटरनेट और व्यावसायिक मार्गदर्शन से प्रेरित होकर वे अब बाजार की मांग को ध्यान में रखकर खेती कर रहे हैं। हदीस जैसे किसान झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं।
पुलिस-प्रशासन का सहयोग और नक्सल मुक्त माहौल ने खोले विकास के द्वार
गढ़वा जिले में नक्सलवाद की समाप्ति के बाद किसानों को सुरक्षित और स्वतंत्र वातावरण मिला है। एसपी दीपक पांडेय के अनुसार, “पुलिस अब स्थानीय लोगों से संवाद कर रही है, जिससे निडर होकर खेती संभव हो रही है।” प्रशासनिक सहयोग से आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आई है।
हदीस के खेत बने सीखने का केंद्र, युवाओं के लिए नया करियर विकल्प
किसान हदीस का खेत अब सीखने की प्रयोगशाला बन गया है। बेरोजगार युवा अब खेती को रोजगार का स्थायी स्रोत मानकर इससे जुड़ने लगे हैं। वे अपने अनुभव खुले दिल से साझा करते हैं और कहते हैं, “अगर सरकार बीज, खाद, सिंचाई और फसल खरीद की गारंटी दे तो गांव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बदल सकती है।”
प्रगतिशील किसानों को सहयोग का आश्वासन
जिला कृषि पदाधिकारी शिव शंकर प्रसाद ने कहा कि “गढ़वा का भंडरिया और बढ़गढ़ प्रखंड पहले नक्सल प्रभावित था, लेकिन अब बदलाव की हवा बह रही है। सरकार ऐसे प्रगतिशील किसानों को योजनाओं से जोड़ेगी और तकनीकी प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता भी दी जाएगी।