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Forest Rights Act claims : वन अधिकार एक्ट के तहत दावों में से एक तिहाई से अधिक खारिज

by Anand Mishra
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नयी दिल्ली : वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत 31 जनवरी 2024 तक 51 लाख से अधिक दावे प्राप्त हुए हैं, जिनमें से एक तिहाई से अधिक खारिज कर दिए गए हैं। यह जानकारी हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट से मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक दावे छत्तीसगढ़ में किए गए थे, जिनकी संख्या 9.41 लाख थी। इसके बाद ओडिशा (7.2 लाख), तेलंगाना (6.55 लाख), मध्य प्रदेश (6.27 लाख), और महाराष्ट्र (4.09 लाख) का स्थान था। इन पांच राज्यों में कुल दावों का 66 प्रतिशत हिस्सा था।

खारिज दावों का आंकड़ा

रिपोर्ट में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ ने सबसे अधिक दावे खारिज किए हैं, जहां चार लाख से अधिक दावे निरस्त कर दिए गए। मध्य प्रदेश में भी 3.22 लाख से अधिक दावे खारिज हुए हैं, जबकि महाराष्ट्र (1.72 लाख), ओडिशा (1.44 लाख) और झारखंड (28,107) ने भी बड़ी संख्या में दावों को खारिज किया।

एफआरए का उद्देश्य व दावों के खारिज होने के कारण

वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के तहत आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों को उस भूमि पर अधिकार प्रदान किया जाता है जिस पर वे पीढ़ियों से रह रहे हैं और जिसे वे बचाने का प्रयास कर रहे हैं। इस कानून के तहत व्यक्ति या समुदाय अपनी भूमि पर अधिकार के लिए दावे प्रस्तुत कर सकते हैं।

हालांकि, नीति विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून के कार्यान्वयन में कई उल्लंघन हुए हैं और बड़ी संख्या में दावों को गलत तरीके से खारिज किया गया है। 2019 में उच्चतम न्यायालय ने 17 लाख से अधिक परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया था, जिनके एफआरए दावे खारिज कर दिए गए थे। बाद में देशव्यापी विरोध के कारण अदालत ने फरवरी 2019 में इस आदेश पर रोक लगा दी थी और खारिज किए गए दावों की समीक्षा करने का निर्देश दिया था।

मध्य प्रदेश व अन्य राज्यों में स्थिति

मध्य प्रदेश में प्राप्त दावों का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खारिज कर दिया गया। राज्य ने 6.27 लाख दावों में से 6.17 लाख दावों का निपटारा किया, और निपटान दर 98.37 प्रतिशत रही। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर 51 लाख से अधिक दावों में से 43.57 लाख दावों का निपटारा किया गया है, जिससे निस्तारण दर 85.38 प्रतिशत रही।

समीक्षा प्रक्रिया पर सवाल

समीक्षा प्रक्रिया में सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों का कहना है कि यह प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण बनी हुई है और केंद्र एवं राज्य सरकारें इस कानून को सही तरीके से लागू करने में विफल रही हैं।

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