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Ganga Sagar Mela 2025 : इतिहास से लेकर मान्यता तक, जानें इस विशेष मेले के बारे में

by Rakesh Pandey
Ganga Sagar Mela
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कोलकाता : गंगा सागर मेला, जिसे हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है, को लेकर कहा जाता है कि यह कुंभ से भी बड़ा मेला है। देशभर में एक प्रसिद्ध कहावत है ‘सब तीरथ बार-बार, गंगा सागर एक बार’, यानी आप सभी तीर्थ स्थलों पर कई बार जा सकते हैं, लेकिन गंगा सागर सिर्फ एक बार ही जा सकते हैं। यही नहीं, इसे लेकर मान्यता है कि गंगा सागर में स्नान करने से 100 अश्वमेध यज्ञों का पुण्य फल मिलता है और सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।

गंगा सागर मेला मकर संक्रांति के समय पर आयोजित होता है। यह वह समय है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और गंगा सागर स्नान का विशेष धार्मिक महत्व होता है। इस बार ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ने इसे महाकुंभ से भी बड़ा मेला बताया है और इसे राष्ट्रीय मेला घोषित करने की मांग की है। आइए जानते हैं गंगा सागर मेला के इतिहास, इसके आयोजन और इसके पीछे की हिंदू मान्यताओं के बारे में।

गंगा सागर मेला कब और कहां लगता है

गंगा सागर मेला हर साल जनवरी महीने में मकर संक्रांति के आसपास आयोजित होता है। यह मेला पश्चिम बंगाल के सागर द्वीप पर लगता है। मेला मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले शुरू होता है और संक्रांति के दिन समाप्त होता है। यह मेला एक साल में सिर्फ एक बार लगता है और लाखों श्रद्धालु इसे मनाने के लिए यहां पहुंचते हैं।

गंगा सागर स्नान का हिंदू धर्म में महत्व

गंगा सागर स्नान हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस स्नान से पुण्य के साथ-साथ पापों से मुक्ति मिलती है। खासतौर पर इस दिन सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे एक शुभ दिन माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह दिन अच्छे समय की शुरुआत का प्रतीक है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

गंगा सागर में स्नान करने से न केवल भौतिक लाभ मिलता है, बल्कि यह आत्मिक शांति और मुक्ति का भी रास्ता खोलता है। इसलिए इस दिन लाखों लोग यहां पवित्र गंगा में डुबकी लगाने आते हैं, ताकि अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकें।

गंगा सागर स्नान की प्रक्रिया

गंगा सागर में स्नान करने के लिए श्रद्धालु विशेष धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। भक्त सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा में स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद अनुष्ठान पूरा कर, वे ऋषि कपिल मुनि की पूजा करते हैं और देसी घी का दीपक जलाते हैं। कई लोग इस दिन यज्ञ और हवन भी करते हैं और कुछ श्रद्धालु उपवास रहते हैं।

यह दिन विशेष रूप से बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने और देवी गंगा के प्रति आभार व्यक्त करने का होता है।

गंगा सागर मेले का पौराणिक इतिहास

गंगा सागर मेला हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। यह कहानी राजा सगर और कपिल मुनि से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा सगर ने विश्व विजय के लिए अश्वमेध यज्ञ किया था। राजा इंद्र ने यज्ञ के घोड़े को चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया। जब राजा सगर के बेटे घोड़े को लेकर आए और मुनि से मिलने पहुंचे, तो उन्होंने मुनि के साथ अपशब्द कहे, जिसके कारण कपिल मुनि ने उन्हें श्राप दिया और वे राख में बदल गए।

राजा सगर के पोते भगीरथ ने पवित्र गंगा से अपने पूर्वजों की राख को धोने का अनुरोध किया, ताकि उनकी आत्माओं को मुक्ति मिल सके। गंगा ने भगीरथ की तपस्या को स्वीकार किया और स्वर्ग से पृथ्वी पर उतर कर उनके पूर्वजों की राख को धो दिया, जिससे उन्हें मोक्ष मिला। तभी से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा और लाखों लोग यहां स्नान करने आते हैं, ताकि वे भी अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकें।

गंगा सागर मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक है और इसमें शामिल होने वाले लोग अपने पापों से मुक्ति, पुण्य और आत्मिक शांति की प्राप्ति की उम्मीद करते हैं।

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