Garhwa (Jharkhand) : झारखंड के गढ़वा जिले से एक ऐसा चौंकाने वाला सच सामने आया है, जिसने विकास के दावों की पोल खोलकर रख दी है। यहां पंडा नदी पर पिछले आठ वर्षों से बन रहा एक पुल विभागीय फाइलों में ‘चालू’ घोषित कर दिया गया है, जबकि हकीकत यह है कि उस तक पहुंचने के लिए अप्रोच रोड तक का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। खरौंधी प्रखंड के राजी गांव में 3 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से बन रहा यह पुल आज भी अधूरा खड़ा है, मानो सरकारी सिस्टम का मजाक उड़ा रहा हो।
आठ साल का लंबा इंतजार, कागजों में पुल ‘तैयार’
इस पुल के निर्माण का कार्य वर्ष 2017 में विशेष प्रमंडल गढ़वा विभाग द्वारा शुरू किया गया था। हैरानी की बात यह है कि इतने वर्षों बाद भी यह महत्वपूर्ण परियोजना अधूरी है, लेकिन विभागीय कारिंदों ने इसे पूर्णता प्रमाण पत्र (Completion Certificate) जारी कर दिया है। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, यह पुल यातायात के लिए विधिवत रूप से ‘चालू’ भी हो चुका है, जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत और बेहद निराशाजनक है।
अप्रोच रोड का अटका रोड़ा, किसानों का फूटा गुस्सा
इस अधूरे पुल से उत्तर प्रदेश की सीमा महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन विडंबना यह है कि पुल तक पहुंचने के लिए आवश्यक अप्रोच रोड के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो पाई है। स्थानीय किसानों ने मुआवजे की उचित राशि न मिलने के कारण अपनी बेशकीमती जमीन देने से साफ इनकार कर दिया है। किसानों के इस विरोध के चलते, करोड़ों की लागत वाली यह महत्वपूर्ण परियोजना अधर में लटकी हुई है, और ग्रामीणों का सपना अधूरा रह गया है।
बारिश में जान जोखिम, पुराने पुल पर मंडराता खतरा
पंडा नदी पर पहले से बना एक जर्जर और छोटा पुल है, जो हर साल बारिश के मौसम में पानी में पूरी तरह से डूब जाता है। ऐसी स्थिति में, ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार करनी पड़ती है। नए पुल का निर्माण स्थानीय निवासियों की वर्षों पुरानी और जायज मांग थी, ताकि उनका यह खतरनाक सफर समाप्त हो सके। लेकिन सरकारी उदासीनता और लचर कार्यशैली के कारण, उनकी यह समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है।
स्थानीय अधिकारी जागे, जांच के दिए आदेश
मामले की गंभीरता को समझते हुए, विशेष प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता हेमंत उरांव ने आखिरकार इस पर संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा, “पुल निर्माण का मामला काफी पुराना है। यदि वास्तव में पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया गया है, तो इसकी गहन जांच कराई जाएगी। जो भी अधिकारी या कर्मचारी इस लापरवाही के लिए दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
अब देखना यह है कि कार्यपालक अभियंता के इस आश्वासन के बाद कब तक जमीनी हकीकत बदलती है और कब गढ़वा के राजी गांव के लोगों को इस ‘कागजी पुल’ से मुक्ति मिलती है। यह मामला विकास के नाम पर हो रही सरकारी लापरवाही और भ्रष्टाचार का एक जीता-जागता उदाहरण है।