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Giridih: अबुआ आवास के लिए बन रही दीवार को वनकर्मी के सिपाही ने बिना नोटिस के अपने हाथों से ढहाया, जांच की मांग

तारा कुमारी और परिवार की महिलाएं लगातार विनती करती रहीं- “प्लीज सर ऐसा मत कीजिए…” लेकिन वनकर्मियों ने एक न सुनी।

by Reeta Rai Sagar
गिरिडीह, झारखंड में अबुआ आवास योजना के तहत बन रहे एक घर की दीवार को वन विभाग के कर्मियों द्वारा बिना नोटिस तोड़ा गया। तारा कुमारी पांडेय और अन्य महिलाएं विरोध कर रही हैं, लेकिन अधिकारियों ने अनसुनी की। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।
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मुख्य बिंदु:
• अबुआ आवास की पहली किस्त मिलने के बाद हो रहा था मकान निर्माण
• बिना नोटिस और जमीन मापी के वन विभाग ने गिराई दीवार
• घटना का वीडियो हुआ वायरल, महिलाओं की गुहार भी नहीं सुनी
• पूर्व विधायक विनोद सिंह ने की जांच और वनाधिकार पट्टा देने की मांग

गिरिडीह, झारखंड: झारखंड के गिरिडीह जिले में वन विभाग की मनमानी का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। बगोदर प्रखंड की तारा कुमारी पांडेय अपने पुराने मिट्टी के घर को तोड़कर अबुआ आवास योजना के तहत नया पक्का मकान बना रही थीं। दीवार बन चुकी थी और ढलाई की तैयारी चल रही थी, तभी वन विभाग के दो सिपाही अचानक पहुंचे और बिना किसी नोटिस या जमीन की मापी के दीवार को धक्का मारकर गिरा दिया।

महिलाओं की गुहार भी बेअसर
तारा कुमारी और परिवार की महिलाएं लगातार विनती करती रहीं- “प्लीज सर ऐसा मत कीजिए…” लेकिन वनकर्मियों ने एक न सुनी। पूरा वाकया मोबाइल कैमरे में रिकॉर्ड हो गया, जो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। आरोप है कि इस कार्रवाई में वनरक्षी आनंद प्रजापति और एक अन्य कर्मी शामिल थे।

तीन पीढ़ियों से रह रहे थे इसी जमीन पर
तारा कुमारी ने बताया कि यह जमीन उनकी दादी-सास को भूदान में मिली थी और वे तीन पीढ़ियों से यहीं रह रहे हैं। अबुआ आवास योजना की पहली किस्त ₹30,000 मिल चुकी थी और उसी राशि से मकान का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, जो लिंटर तक पहुंच चुका था।

वन विभाग की कार्रवाई से ₹1 लाख का नुकसान
बिना किसी नोटिस और मापी के इस अचानक कार्रवाई से लाभुक परिवार को लगभग ₹1 लाख का नुकसान हुआ है। तारा कुमारी ने इस घटना को लेकर बगोदर बीडीओ और थाना में लिखित शिकायत दर्ज कराई है।

पूर्व विधायक विनोद सिंह ने उठाई आवाज
घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए बगोदर के पूर्व विधायक और सीपीआई (माले) नेता विनोद सिंह ने इसे गरीबों के अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया है। उन्होंने कहा, “अगर जमीन वन क्षेत्र में आती भी है तो लाभुक को वनाधिकार पट्टा मिलना चाहिए था। जांच होनी चाहिए कि क्या यह जमीन सच में वन क्षेत्र में आती है और यदि आती है तो पट्टा क्यों नहीं दिया गया?”

प्रभारी फोरेस्टर ने मानी चूक
जब इस मामले पर प्रभारी फोरेस्टर डिलो रविदास से पूछा गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि न जमीन की मापी की गई और न ही कोई नोटिस जारी किया गया था। उन्होंने इसे जांच का विषय बताया।

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