संयुक्त राष्ट्र : भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से आतंकवाद, चरमपंथ और हिंसा पर अपनी प्रतिक्रिया तय करने में राजनीतिक सहूलियत को आड़े नहीं आने देने का आह्वान किया। जयशंकर का यह बयान खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर जारी कूटनीतिक गतिरोध के बीच कनाडा पर परोक्ष प्रहार प्रतीत होता है।
विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र की आम बहस को संबोधित करते हुए कहा कि क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप की कवायद चुनिंदा तरीके से नहीं की जा सकती। वे दिन बीत गये, जब कुछ राष्ट्र एजेंडा तय करते थे और उम्मीद करते थे कि दूसरे भी उनकी बातें मान लें।
एस जयशंकर ने इशारों-इशारों में ही अमेरिका को भी लपेटा
बयान देने के दौरान विदेश मंत्री का इशारा परोक्ष रूप से अमेरिका की तरफ था, जिसने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कथित रूप से कनाडा को खुफिया सूचना उपलब्ध कराई थी। राजनीतिक सहूलियत संबंधी जयशंकर की टिप्पणी कनाडा के संदर्भ में प्रतीत होती है, जिसके प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल में अपने देश में एक खालिस्तानी चरमपंथी नेता की हत्या में भारतीय एजेंटों की ‘संभावित’ संलिप्तता का आरोप लगाया था। भारत ने उनके बयान को बकवास व राजनीति से प्रेरित करार दिया था।
विदेश मंत्रालय ने दिया था मुंहतोड़ जवाब
पिछले सप्ताह विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदर बागची ने कहा था कि उन्होंने (कनाडा सरकार ने) आरोप लगाये हैं। ऐसा जान पड़ता है कि कनाडा सरकार के ये आरोप प्राथमिक तौर पर राजनीति से प्रेरित हैं। कनाडा में सिखों की आबादी 7,70,000 है, जो देश की कुल जनसंख्या का दो प्रतिशत है। वहां सिख एक अहम वोट बैंक समझे जाते हैं।
नियम आधारित व्यवस्था को मिले बढ़ावा :
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में कहा कि हमारी चर्चाओं में, हम अक्सर नियम आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं। समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति सम्मान की भी बात भी उठाई जाती है, लेकिन इन सभी चर्चाओं के लिए, अब भी कुछ देश हैं, जो एजेंडा तय करते हैं और नियमों को परिभाषित करते हैं। हमेशा यह नहीं चल सकता है। ऐसा नहीं है कि इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। एक बार हम सभी अपना दिमाग इस पर लगाएं, तो निश्चित ही निष्पक्ष, समान व लोकतांत्रिक व्यवस्था उभरकर सामने आएगी।
‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’
अपने संबोधन में जयशंकर ने कहा कि सभी देश अपने राष्ट्रहित को आगे बढ़ाते हैं। भारत में हमें यह वैश्विक भलाई के खिलाफ नजर नहीं आता। जब हम अग्रणी ताकत बनने की आकांक्षा लेकर बढ़ते हैं, तो यह आत्म-अभ्युदय नहीं, बल्कि अधिक जिम्मेदारी लेना व योगदान करना होता है। दुनिया असाधारण उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। यही असाधारण जिम्मेदारी का भाव है कि भारत ने जी20 की अध्यक्षता संभाली। ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का भारत का दृष्टिकोण महज कुछ देशों के संकीर्ण हितों पर नहीं, बल्कि कई राष्ट्रों की प्रमुख चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास है।
संरचनात्मक असमानताओं और असमान विकास ने ‘ग्लोबल साउथ’ पर बोझ डाल दिया है, लेकिन कोरोना के प्रभाव और मौजूदा संघर्षों, तनावों और विवादों के नतीजों से तनाव बढ़ गया है। परिणामस्वरूप, हाल के वर्षों के सामाजिक-आर्थिक लाभ उलट गये हैं। जब पूर्व-पश्चिम ध्रुवीकरण इतना तेजी से हो रहा है और उत्तर-दक्षिण विभाजन इतना गहरा है, ऐसे में नयी दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन ने इस बात को दोहराया कि कूटनीति और संवाद ही एकमात्र प्रभावी समाधान है।