सेंट्रल डेस्क : 9 मार्च 1951 का दिन भारतीय संगीत के इतिहास में एक खास दिन बनकर आया, जब उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी के घर एक बेटे का जन्म हुआ। रुत वसंत की थी और माहौल रंगीन था, लेकिन उस छोटे से बच्चे के लिए जो शब्द उस्ताद अल्लारक्खा ने पहली बार कहा, वह उसकी पूरी जिंदगी की धारा तय करने वाला था। उस्ताद साहब ने अपने नवजात बेटे के कान में एक खास तालीम दी, जो उस समय की पारंपरिक ताल शास्त्र की धुन थी। ये वह समय था जब उस्ताद अल्लारक्खा अपने बेटे को बधाई देने के बजाय उसे ‘ताल’ के मंत्रों में ढाल रहे थे और यह बच्चे का भाग्य बन गया, जिसने उसे संगीत की दुनिया में अमर कर दिया। यह बच्चा और कोई नहीं, बल्कि भारतीय तबले के महान उस्ताद जाकिर हुसैन थे।
घरवालों की नजर में ‘मनहूस’ जाकिर हुसैन
जाकिर हुसैन का जन्म कोई सामान्य घटना नहीं थी। उस्ताद साहब के घर में इस बच्चे का आगमन उस समय हुआ, जब उनके पिता का स्वास्थ्य नाजुक था और पारिवारिक हालात भी खराब थे। उनका जन्म होने के बाद उनके परिवार में इस कदर परेशानी आई कि घरवालों ने उन्हें मनहूस मान लिया। लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर की किताब ‘जाकिर हुसैन : एक संगीतमय जीवन’ में इस बात का खुलासा किया गया है कि जाकिर हुसैन की मां को किसी ने कह दिया था कि उनका बच्चा मनहूस है, जिसके कारण उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा और घर की स्थिति खराब हो गई। इतना ही नहीं, जाकिर हुसैन को दूध तक नहीं पिलाया गया और उन्हें एक सरोगेट मदर द्वारा पाला गया।
बचपन की कठिनाइयां
जाकिर हुसैन का बचपन कई प्रकार की कठिनाइयों से भरा हुआ था। वे अक्सर बीमार रहते थे, कभी टायफाइड, कभी फफोले, यहां तक कि एक बार उन्होंने गलती से केरोसिन तक पी लिया था। इस दौरान उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ता गया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उस्ताद अल्लारक्खा की तबीयत में सुधार हो रहा था। हालांकि, उनका भाग्य उस दिन पलट गया, जब एक ज्ञानी बाबा ने आकर उनकी मां को बताया कि यह बच्चा चार साल तक कठिनाइयों से जूझेगा, लेकिन बाद में वह न केवल ठीक होगा, बल्कि संगीत के क्षेत्र में महान होगा। बाबा ने यह भी कहा कि उनका नाम ‘जाकिर हुसैन’ रखा जाए। फिर यही नाम संगीत की दुनिया में अमर हो गया।
संगीत की दुनिया में क्रांतिकारी कदम
जाकिर हुसैन का संगीत सफर आसान नहीं था, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें भारत और विश्व भर में एक प्रतिष्ठित संगीतकार बना दिया। सबसे खास बात यह है कि उस्ताद जाकिर हुसैन ने भारतीय तबले को केवल पारंपरिक शास्त्रों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने इसे वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई। उन्होंने भारतीय तबले और अमेरिकी जैज़ को मिलाकर एक ऐसा संगीत प्रयोग किया, जो न केवल संगीत की दुनिया में, बल्कि ताल शास्त्र के क्षेत्र में भी एक अद्वितीय कार्य माना गया।
उस्ताद जाकिर हुसैन का यह प्रयोग उनके संगीत को अलग पहचान दिलाने वाला साबित हुआ। उन्होंने भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर लाने के लिए अपने तबले के साथ प्रयोग किए और उसे हर जगह अपनी कला का लोहा मनवाया। उनके संगीत में पारंपरिक भारतीय राग और पश्चिमी जैज़ की धारा का संगम एक नई शैली के रूप में उभरा, जो संगीत प्रेमियों और आलोचकों के बीच चर्चा का विषय बना।
मशहूर चाय विज्ञापन और लोकप्रियता
90 के दशक में दूरदर्शन पर एक चाय के विज्ञापन ने उस्ताद जाकिर हुसैन को हर घर में पहचान दिलाई। इस विज्ञापन में यमुना नदी के किनारे और ताजमहल के बैकग्राउंड में एक युवा जाकिर हुसैन तबला बजाते हुए नजर आए थे। उनकी अंगुलियां तबले पर इतनी सहजता से थिरक रही थीं कि यह दृश्य कई सालों तक दर्शकों के दिलो-दिमाग में बैठ गया। यह विज्ञापन भले ही चाय का था, लेकिन जाकिर हुसैन की पहचान घर-घर में बन गई। उनके संगीत की सरलता और प्रवाह ने उन्हें आम परिवारों के बीच भी बेहद लोकप्रिय बना दिया।
उस्ताद जाकिर हुसैन का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उनकी कला और संगीत के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय संगीत का एक अद्वितीय रत्न बना दिया। भारतीय तबले और अमेरिकी जैज़ का संयोजन, उनका वैश्विक मंच पर योगदान और उनकी सहज लोकप्रियता ने उन्हें संगीत जगत में अमर कर दिया। जाकिर हुसैन का यह संगीत सफर हमें यह सिखाता है कि अगर किसी के अंदर लगन और समर्पण हो, तो जीवन की कठिनाइयों को पार करके वह महानता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है।
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