भारतवर्ष संस्कृति और धर्म प्रधान देश है। यहाँ अनेक संस्कृतियों और धर्मों का मिलन हुआ है। यहाँ के विभिन्न धर्मावलंबी अपने-अपने तरीक़े से अपने पर्व और त्योहार को मनाते हैं। रामनवमी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म भारतवर्ष की पुण्यभूमि अयोध्या में हुआ था।
नौमी तिथि मधुमास पुनीता।
सुकल पक्ष अभिजीत हरि प्रीता।
मध्यदिवस अति सीत न घामा।
पावन काल लोक विश्रामा।।
सुर समूह विनती करि, पहुंचे निज निज धाम।
जग निवास प्रभु प्रगटे,अख़िल लोक विश्राम।
तुलसीदास मानस 1/191
आज सब ओर जब मानव मूल्यों का ह्रास हो रहा है,सदाचार और संस्कार के सारे सेतुबंध टूट रहे हैं,तो ऐसी परिस्थिति में रामनवमी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इसी दिन मानवीय मूल्यों की स्थापना और सदाचार और संस्कार के सेतुबंध को स्थापित करने के लिए राम का पदार्पण इस धरा धाम पर हुआ था।राम कथा का स्तवन गान करने वाले अनेकानेक कवि हुए; उनमें आदि कवि महर्षि वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, भवभूति, जयदेव, मुरारि, केशवदास, हरिऔध, मैथिली शरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामचरित उपाध्याय, केदारनाथ मिश्र प्रभात, डॉ..राम कुमार वर्मा ,कुवंर चंन्द्र प्रकाश सिंह,गोवर्धन प्रसाद सदय, डॉ. श्याम नंदन किशोर के नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। सभी ने अपने अपने ढ़ंग से अपने वातावरण के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का गान किया है; किंतु साम्प्रत परिवेश में तुलसी के श्रीराम ही अधिकाधिक ग्राह्य बन पाए हैं।
रामनवमी का महत्व इसलिए भी है कि इसी दिन महाकवि गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस का जन्म श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में हुआ:
नौमी भौम वार मधुमासा।
अवधपुरी यह चरित प्रकाशा।
अपने महान कर्मों से भले ही श्रीराम ने त्रेतायुग में पर्याप्त प्रशस्ति पाई हो, परंतु इस युग में तो तुलसी के मानस का जन्म जिस दिन हुआ, सचमुच वही दिन भारतीय इतिहास का अभूतपूर्व विलक्षण पृष्ठ बन गया। तुलसी के मानस में श्रीराम एक अयस्कांतीय चरित्र एवम् उदात्त व्यक्तित्व के रुप में उजागर हो उठे हैं। श्री राम की पावन कर्मभूमि होने के कारण सचमुच भारत भा-रत बन गया। सभ्यता और संस्कृति की डूबती नौका को बंचाने के लिए उसे एक सुदृढ़ कर्णधार गया। निराशा और हताशा की अंधेरी घाटियाँ एक अभिनव दीप्ति से आभासित हो उठीं।
भारतीय अंक साधना में यों तो सभी अंकों का महत्व है, परंतु नौ के अंक का विशिष्ट स्थान है। एक अंक की सबसे बड़ी संख्या नौ ही है। नौ के अंक के गुणनफल का योग हमेशा नौ ही होता है। यथा 9×2=18 ,9×3=27**।
तुलसी ने दोहावली में लिखा है:
राम नाम को अंक है, सब साधन है शून्य।
अंक गए कछु हाथ नहीं, अंक रहे दस गुण।
दोहावली 10
प्राकृत जगत में कर्मों के नौ साक्षी हैं: क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर, सूर्य, चंद्र, यमदेव, काल।
ग्रह नौ माने गए हैं; सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु।
दुर्गा के नौ रूप हैं : शैलपुत्री, ब्रह्मपुत्री, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ईश्वर ने सृष्टि का और विस्तार करने के लिए अपने ही सदृश 9 मानस पुत्रों की सृष्टि की, वे हैं: भृगु, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, अंगिरा, मरीचि, दक्ष, अत्रि और वशिष्ठ। भागवत में नौ प्रकार की भक्ति का उल्लेख है : श्रवण, स्मरण, कीर्तन, वंदन, अर्चन, पाद सेवन, सख्य, दास तथा आत्मनिवेदन। मानस में भी नौ प्रकार की भक्ति की चर्चा है।
भगवान राम ने माता शबरी से 9 प्रकार की भक्ति का उपदेश लिया है। तुलसी ने मानस में 9 प्रकार के व्यक्तियों से विरोध का निषेध किया है :
तब मारीच हृदय अनुमाना।
नवहि विरोधे नहि कल्याणा।
सस्त्री,मर्मी,प्रभु,सठ,धनी।
वैद्य, वंदी, कवि, भानस, गुनी।
उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में 9 ही महारत्न थे :
कालि, घट, क्षपण्क, अमर, धनवंतरि, वैताल।
वररुचि, शंकु, वराह, मिहिर, विक्रम के नव भाल।
मुडल सम्राट मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर के दरबार में भी 9 ही महारत्न थे:
रहिमन, फैजी, अबुल फजल, बीरबल, कोका, तान।
टोडरमल, भगवान दास, अकबर.के नव मान।
शास्त्रानुसार बुद्धि के भी 9 दोष माने गए हैं :
काम, क्रोध, लोभ, भय, दैन्य, कुटिलता, दयाहीनता, सम्मान हीनता और धर्महीनता।
साहित्य में पहले 9 रस की ही कल्पना की गई थी :
करुणा, वीर, वीभत्स है, हास्य, रौद्र, श्रृंगार।
अद्भुत, शांत, भयानका, नव रस कहत उदार।
ब्राह्मण के 9 स्वाभाविक कर्म कहे गए हैं : *शम (अंत:करण का निग्रह), दम (इन्द्रियों का दमन), शौच (बाहर भीतर की शुद्धि), तप (धर्म के लिए कष्ट सहना), क्षांति (क्षमा भाव), आर्जवम् (मन,इन्द्रियों की सरलता), शास्त्र ज्ञान और परमात्म तत्व का अनुभव।
निधियाँ 9 हैं :
महापद्म, पद्मश्च, शंखो मकर, कच्छपौ।
मुकुंद, कुंद, नीलश्च, खर्वश्च निधयो नव।
जिस प्रकार भारतीय तंत्र साधना में नौ के अंक का महत्व स्वयं सिद्ध है, उसी प्रकार रामनवमी का महत्व असंदिग्ध है। राम और कृष्ण भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ और भारतीय जनता के केन्द्र बिंदु हैं। राम और कृष्ण के रंग से जितना भारत रंगा हुआ है, उतना किसी दूसरे रंग से रंगा हुआ नहीं है। प्रत्येक भारतीय के हृदय में उनका प्रेम अभी भी प्रवाहित हो रहा है। दूर दूर आती हुई श्रीराम जय राम जय जय राम और गोपाल कृष्ण राधे राधे कृष्ण की धूम का उद्घोष इस बात का साक्षी है।
राम हमारे जीवन में ओत प्रोत होकर एक रूप हो गए हैं। भारत के गांवों में जब दो व्यक्ति आपस में मिलते हैं, तो परस्पर हाथ जोड़कर राम राम या जय श्रीराम कहते हैं। देहातों में यह कहावत प्रचलित है कि जिसे राम राखें, उसे कौन चाखे। इन शब्दों में भगवान की रक्षा शक्ति में मानव का दृढ़ विश्वास प्रतिबिंबित होता है। प्रभु विश्वास पर चलनेवाला मानव कार्य या संस्थान के लिए राम भरोसे शब्द का प्रयोग हमारे यहाँ प्रचलित है।
कहावत है :
राम भरोसे बैठकर सबका मोजरा ले।
घट घट में राम बसते हैं ,यह शब्द समूह ईश्वर की सर्व व्यापकता का दर्शन कराता है:
रग रग में हैं राम, पग पग पै हैं राम,
राम का प्रमाण पूछ,देश न लजाइये।
शबरी के भाव में हैं,केवट की नाव में हैं,
राम जी दिखेंगे, आप खुद को जगाइये।
राम संस्कार में हैं, आपस के प्यार में हैं,
भरत सरीखे आप भाई बन जाइये।
राम सुप्रभात में हैं,राम मीठी बात में हैं,
राम राम बोल, जग अपना बनाइये।
किसी भी सुव्यवस्थित और संपन्न राज व्यवस्था के लिए रामराज शब्द पर्याप्त हो गया है।इस तरह राम हमारे समग्र जीवन में ओत-प्रोत हो गए हैं।
रामनवमी का पर्व हमें संदेश देता है कि कौटुम्बिक, सामाजिक, नैतिक और राजकीय मर्यादा में रहकर भी पुरुष किस तरह उतम हो सकता है यह मर्यादा पुरुषोतम राम का जीवन हमें सिखाता है।मानव उच्च ध्येय और आदर्श रखकर उन्नति प्राप्त कर सकता है, यह राम ने अपने जीवन के द्वारा बताया है और वैसा व्यक्ति देवत्व भी प्राप्त कर सकता है। विकारों, विचारों और व्यावहारिक कार्यो में उन्होंने मानव की मर्यादा को नहीं छोड़ा,इसलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।
धर्म परायण राम की पालकी कंधे पर उठाकर आज सभी धन्यता का अनुभव करते हैं,क्योंकि राम वैदिक संस्कृति के रक्षक थे और दैवी संपत्ति के गुणों से युक्त।आसुरी वृत्ति का नाश करनेवाले को ही सिर पर उठाकर भारत नाचा है और उन्हें ही आम जनता ने अपने हृदय में स्थान दिया है,यह बात हमें रामनवमी बताती है।
राम सद्गुणों के भंडार हैं :- हृदयगत स्वच्छता, कर्तव्यपरायणता, कोमलता, परदुखकातरता,अहंकारशून्यता, अतुलनीय नम्रता, विह्वलता, शरणागत वत्सलता, अनुपम उदारता, संकोचशीलता, उन्मुक्त सद्भावना, निरंतर आशावादिता, शिशुसुलभ सरलता, दानशीलता, क्षमाशीलता, अनाडम्बर, धार्मिकता आदि।
जो राम के सद्गुण हैं, उनको आज के दिन समझ लेना चाहिए, जिसे राम बनने की इच्छा हो, जिसे नर से नारायण बनना हो-उसे राम का एक एक गुण अपना लेना चाहिए और आत्मसात करना चाहिए, तभी वह सचमुच एक दिन रामो भूत्वा रामंयजे राम बनकर राम की पूजा करेगा,; यही रामनवमी का शाश्वत संदेश है।
(संदर्भ:रामनवमी का माहात्म्य )
डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय ‘तारेश’
पूर्व अध्यक्ष, हिंदी-विभाग
रांची विश्वविद्यालय, रांची
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