लखनऊ : उत्तर प्रदेश के अलीगंज में पुलिस के एक सिपाही को 34 साल बाद न्याय का सामना करना पड़ा है। विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) श्याम मोहन जायसवाल ने सिपाही अशोक कुमार दुबे को गैरकानूनी गिरफ्तारी, थाने में पिटाई और भ्रष्टाचार के जुर्म में दोषी करार देते हुए चार साल की कठोर कैद और 21,500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।
क्या था मामला
1991 में, प्रेम नारायण वर्मा ने आरोपी सिपाही के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि सिपाही ने उनके भतीजे को जबरन थाने में बंद कर पिटाई की थी और उन्हें भी मारा पीटा था। इतना ही नहीं, सिपाही ने उन्हें थाने से छोड़ने के लिए पांच हजार रुपये की रिश्वत भी ली थी।
इस मामले की जांच में थाना अलीगंज के विवेचक ने दोषियों को बचाने के लिए अंतिम रिपोर्ट लगा दी थी, लेकिन प्रेम नारायण वर्मा ने हार नहीं मानी और न्यायालय में अपील की। न्यायालय ने उनकी अपील स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई शुरू की।
क्यों देरी से मिला न्याय
इस मामले में न्याय मिलने में 34 साल का लंबा समय लग गया। इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जैसे कि:
विवेचक द्वारा दोषियों को बचाने की कोशिश : थाना अलीगंज के विवेचक ने शुरू से ही दोषियों को बचाने की कोशिश की, जिसके कारण जांच में देरी हुई।
न्यायिक प्रक्रिया में देरी : भारतीय न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक है, जिसके कारण मामलों के निपटारे में काफी समय लग जाता है।
आरोपी की मृत्यु : इस मामले में एक आरोपी की मृत्यु हो जाने के कारण मुकदमे की सुनवाई में देरी हुई।
दूसरी घटना : किशोरी के साथ दुष्कर्म
यह घटना समाज में व्याप्त अपराध और न्यायपालिका में आ रही चुनौतियों को उजागर करती है। एक तरफ जहां 34 साल बाद न्याय मिलने की बात खुशी का विषय है, वहीं दूसरी ओर एक किशोरी के साथ हुई दुष्कर्म की घटना चिंता का विषय है।