स्पेशल डेस्क, नई दिल्ली : हिंदू धर्मावलंबियों में तीज का त्यौहार सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस त्यौहार को विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं मनाती हैं। देश के अधिकांश क्षेत्रों की विवाहिता महिलाएं अलग-अलग परंपरा और विधि के अनुसार यह त्यौहार करती हैंं। तीज में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा होती है। हरतालिका व्रत अथवा हरितालिका तीज से एक माह पहले हरियाली तीज मनायी जाती है।
इस पर्व में सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए 24 घंटों का निर्जला व्रत रखती हैं। कुछ हरितालिका तीज का व्रत भाद्र पद के शुक्ल पक्ष की तृतीय को मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी सुहागिन महिलाएं इस व्रत को करती हैं, उसे सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं। इस व्रत में सुहागिनों को पूरे विधि-विधान ने माता पार्वती व भगवान शिव को पूजा करनी होती है।
शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। इस व्रत के बाद ही भगवान शिव माता पार्वती को प्राप्त हुए थे। हरितालिका तीज के एक महिना पहले हरियाली तीज मनाया जाता है।
जाने हरितालिका तीज के शुभ मुहूर्त
पंडित राकेश मोहन शास्त्री के अनुसार वर्ष 2023 में 19 अगस्त को हरियाली तीज होगी। इसके एक माह बाद हरितालिका तीज का व्रत 18 सितंबर को पर्व मनाया जाएगा। तृतीया तिथि की शुरुआत 17 सितंबर के 11:10 बजे दिन से 18 सितंबर को 12:40 रात तक रहेगा। हरितालिका तीज के शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:08 बजे से से 12:57 बजे, विजय मुहूर्त 2:35 बजे से 3:23 तक , गोधूलि मुहूर्त शाम 6:39 से 7:02 बजे तक है।
हरितालिका तीज क्यों मनाया जाता है?
हरितालिका तीज विशेषकर विवाहित महिलाएं करती हैं। तीज त्यौहार के दिन सभी सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए भगवान शिव और माता पर्वती की पूजा करती है। इस दौरान सभी सुहागिनों 24 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं । शाम के समय सभी सुहागिन महिलाएं समूह में तीज व्रत की कथा सुनती है। व्रत से पहले सभी व्रती माता पर्वती और भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर पूजा करती है।
व्रत में सभी विवाहिता 16 श्रृंगार के वस्तुओं को माता पार्वती को अर्पित करती है। उसके बाद तीज व्रत का कथा सुनती है। इस दौरान पुरोहित कथा के माध्यम से सभी सुहागिन महिलाओं को इस व्रत के महत्व को समझाते है। इस व्रत कथा वाचन के बाद सभी महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती को प्रणाम कर अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ पर्वती भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी, इसी व्रत के फल से भगवान शंकर मां पार्वती को पति के रूप में प्राप्त हुए थे। उस समय के बाद से यह त्यौहार अब तक चला आ रहा है। इस त्यौहार का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। सुहागिन महिलाओं के साथ युवतियाँ भी अच्छे वर की कामना के लिए इस पर्व को करती है ।