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चार साल बाद हुर्रियत नेता मीरवाइज की नजरबंदी खत्‍म, बोले घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी होनी चाहिए

by Rakesh Pandey
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श्रीनगर: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने बढ़ा फैसला लेते हुए चार वर्ष बाद आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की नजरबंदी को खत्म कर दिया है। वहीं आजाद होते ही मीरवाइज शुक्रवार को श्रीनगर के जामिया मस्जिद में नमाज के लिए पहुंचें। इस दौरान वे बदले-बदले नजर आए। उन्होंने ना आजादी का जिक्र किया और ना ही पाकिस्तान की बात की, केवल कश्मीर के एकीकरण पर जोर दिया।

इस दौरान जामिया मस्जिद में भी कहीं देशविरोधी नारेबाजी और आजादी का नारा नहीं लगा। ऐसे में कहा जा रहा है कि रिहाई के तत्काल बाद ही मीरवाइज ने अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है। कश्मीर मसले का हल तथा कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए प्रयास करने की बात कर उन्होंने यह जता दिया है कि आने वाले दिनों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। इस दौरान मीवाईज की आंखें नम नजर आयीं।

मनोज सिन्‍हा बोले- मीरवाइज एक स्वतंत्र नागरिक हैं:

मीरवाइज अगस्त 2019 से अपने घर में नजरबंद थे। उनकी नजरबंदी को कई बार प्रशासन ने नकारा। पिछले माह उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी कहा था कि मीरवाइज एक स्वतंत्र नागरिक हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा का मुद्दा है।

इस लिए कहा जा रहा है कि रिहाई के पीछे है राजनीतिक कारण:

मीरवाइज के रिहाई को राजनीति से जोड़ने की मुख्य वजह हालिया घटनाक्रम हैं। विदित हो कि उनकी रिहाई से पहले जम्मू कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष व भाजपा प्रवक्ता डॉ. द्राक्षां अंद्राबी नगीन स्थित आवास पर जाकर मीरवाइज से मिलीं थीं। उनका कहना है कि वह चूंकि धार्मिक संस्थाओं की प्रमुख हैं। इस नाते उनसे मुलाकात हुई। सरकार ने अमन का माहौल बनाया है। चार साल बाद सरकार ने उनकी रिहाई की, उन्होंने जामिया से तकरीर की, लेकिन कहीं भी न पथराव हुआ और न ही गोलियां चलीं। सकारात्मक रूप से उनकी रिहाई को लिया जाना चाहिए। हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले कश्मीर के बड़े नेताओं की नजरबंदी समाप्त कर केंद्र की भाजपा सरकार कश्मीर के लोगों को यह बताना चाह रही है कि वह किसी के खिलाफ नहीं है।

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अलगाववादी मुख्य धारा की राजनीति में खोजने लगे जगह :

जम्मू एंड कश्मिर में आधारा 370 खत्म होने के बाद अलगाववादियों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया है। गिलानी गुट के लगभग सभी प्रमुख नेता या तो जेल में बंद हैं या फिर भूमिगत हैं। ऐसे में पाकिस्तान की आवाज उठाने वाला कोई नहीं बचा। बदली परिस्थितियों में सक्रिय अलगाववादी अब मुख्य धारा की राजनीति में जगह खोजने लगे हैं।

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