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Jamshedpur MGM Hospital : कभी भी ढह सकती है इमारत, जानें 50 साल से क्यों नहीं हुआ जीर्णोद्धार

दीवार पर लटक रहे हैं जानलेवा छज्जे

by Mujtaba Haider Rizvi
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जमशेदपुर : कोल्हान के सबसे बड़े व 60 साल पुराने महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज-अस्पताल के मामले में सरकार से लेकर निचले स्तर तक लापरवाही बरती गई है। अस्पताल की इमारत की कभी मरम्मत नहीं कराई गई। शायद ही किसी को याद हो जब इस बिल्डिंग की मरम्मत हुई हो। इस जर्जर इमारत के लटके हुए छज्जे, उखड़े प्लास्टर वाली छतें और काई लगी दरार वाली दीवारें एमजीएम अस्पताल की बदहाली की कहानी बयां कर रही हैं। अस्पताल के एक डॉक्टर बताते हैं कि साल 2018 में मरम्मत का पैसा आया था। मगर, उसकी भी बंदरबांट कर ली गई। मरम्मत का काम कुछ नहीं हुआ। ब्लड बैंक, गायनी वार्ड, चिल्ड्रेन वार्ड, बर्न वार्ड, ऑर्थो आदि बिल्डिंग अभी जर्जर हैं और किसी भी समय ढह सकती हैं। सूत्र बताते हैं कि विभागीय स्तर से ही कभी मरम्मत के बारे में नहीं सोचा गया।

दरो-दीवार बयां कर रहे इमारत की दास्तां

एमजीएम अस्पताल में 20 साल पहले से छज्जा और छत के प्लास्टर गिरने का सिलसिला चल रहा है। यहां आज भी इमारतों के बाहर छज्जे लटके हुए हैं। कई छज्जे टूट कर लटक रहे हैं, जो अगर गिर जाएं तो नीचे मौजूद लोगों के लिए खतरा है। इन लटक रहे छज्जों को भी नहीं हटाया गया है। यही नहीं, जहां छज्जे टूट गए हैं, वहां उनकी मरम्मत तक नहीं कराई गई है। गायनी वार्ड और चिल्ड्रेन वार्ड की दीवार पर दरारें हैं। इनकी छतों के प्लास्टर उखड़ गए हैं। ऑर्थो वार्ड की दीवारों पर दरारों के साथ काई जमी है। यहां मौजूद मरीज रविवार को हुई घटना के बाद दहशत में हैं। द फोटान न्यूज ने इन मरीजों से बात करनी चाही तो उन्होंने साफ मना कर दिया। बोले न नाम छापिए और ना ही उनकी फोटो लीजिए। अस्पताल प्रबंधन ने मना कर दिया है। किसी भी बाहरी व्यक्ति से बात नहीं करनी है। एक मरीज ने बताया कि एक तो बीमारी से परेशान हैं और अब यह एक नया डर बैठ गया है कि कहीं बिल्डिंग गिर न जाए।

मंत्रियों को क्यों नहीं दिखी जर्जर इमारत

जब रघुवर दास झारखंड के सीएम थे, तो उन्होंने एमजीएम अस्पताल का निरीक्षण किया था। इसके अलावा, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी, राजेंद्र प्रसाद सिंह, बन्ना गुप्ता आदि भी एमजीएम अस्पताल का निरीक्षण करते रहते थे। मगर, किसी ने इमारत की मरम्मत की तरफ ध्यान नहीं दिया। कहा जा रहा है कि अगर इमारत की मरम्मत होती रहती तो यह बिल्डिंग इतनी जर्जर नहीं होती।

दो साल पहले चकाचक हुआ था प्रशासनिक ब्लॉक


बताते हैं कि दो साल पहले एमजीएम अस्पताल के प्रशासनिक ब्लॉक की मरम्मत की गई थी। इस ब्लॉक में ही एमजीएम अस्पताल के अधीक्षक का चैंबर है। साथ ही इसमें क्लर्क भी बैठते हैं। बताया जा रहा है कि जब भी सरकार ने मरम्मत का पैसा दिया तो उससे प्रशासनिक ब्लॉक को ही संवारा गया। विजया जाधव जब पूर्वी सिंहभूम की डीसी थीं, तो एमजीएम अस्पताल की इमरजेंसी का विस्तार किया गया था। इसके फर्श को ठीक किया गया था। मगर, इमारतों को ठीक करने की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। जबकि, एमजीएम अस्पताल में कुछ नई इमारतों का निर्माण कराया गया है।

भवन निर्माण से नहीं कराई गई जांच


नियमानुसार एमजीएम अस्पताल प्रबंधन को जर्जर इमारतों की जांच के लिए भवन निर्माण विभाग को पत्र लिखना चाहिए था। मगर, कभी अधीक्षक ने ऐसा करना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी। सब भगवान भरोसे चल रहा है। अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि एमजीएम अस्पताल डिमना में बने नए अस्पताल में शिफ्ट होना था। इस वजह से इसकी मरम्मत का काम नहीं हुआ। जबकि, डिमना में नया एमजीएम अस्पताल तो इसी साल बन कर तैयार हुआ है। लोग सवाल कर रहे हैं कि डिमना में तो इसी साल नया अस्पताल बन कर तैयार हुआ है। ऐसे में पुराने अस्पताल की मरम्मत करनी चाहिए थी।

पिछले डेढ़ साल से नई बिल्डिंग का इंतजार

नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर एमजीएम अस्पताल प्रबंधन के एक आला अधिकारी कहते हैं कि विभाग यही सोच रहा था कि डिमना में नया अस्पताल बन कर तैयार हो रहा है। इसलिए, इस पुरानी इमारत का अब क्या करना। वैसे भी अस्पताल की नई बिल्डिंग में शिफ्टिंग के बाद इस पुरानी इमारत को ढहा दिया जाना है। ऐसे में इसकी मरम्मत पर पैसे क्या फूंकना।

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