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Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : आखिर शौक बड़ी चीज है

Jharkhand Bureaucracy : झारखंड की नौकरशाही में सीनियरिटी के पायदान पर कदम रखकर भी कुछ अधिकारी सत्ता-संतुलन साधन के मोर्चे पर कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। ज्यादातर इनकी अपनी गलती इनके लिए बड़ी समस्या का कारण बन जाती है। जानें क्या कुछ चल रहा है अंदरखाने, द फोटोन न्यूज के एग्जीक्यूटिव एडिटर की कलम से।

by Dr. Brajesh Mishra
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गुरु पिछले कुछ समय से मौन थे। वनांचल के राजनीतिक गलियारे से एक के बाद एक दुखद सूचनाएं आ रही थीं। लिहाजा पूरा मूड-माहौल गमगीन हो गया था। अब स्थितियां सामान्य होने की ओर हैं। कुछ समय का ठहराव गतिमान होने लगा है। गुरु फिर अपने ट्रैक पर लौट आए। हल्की-हल्की बारिश के बीच घर के बरामदे में कुर्सी लगाकर अखबार पढ़ रहे थे। दरबार खाली दिखा। सो, खबर की खोज में धीरे-धीरे चौखट की सीढ़ी चढ़ गया। गुरु भी एकांत से शायद भन्ना गए थे।

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नजर पड़ते ही बड़े उत्साह से स्वागत किया। बोले- आओ, आओ, बड़े दिन बाद दिखे। हाथ जोड़कर अभिवादन किया। बगल की कुर्सी खींचकर चुपचाप बैठ गया। बातचीत गुरु ने ही शुरू की। पूछा- और बताओ क्या चल रहा है नौकरशाहों के दरबार में? बात आगे बढ़ाने के लिए जवाब देना था। सो दिया, ‘चल तो बहुत कुछ रहा है गुरु। बस चलकर चौहद्दी से बाहर नहीं आ रहा।’ बात पूरी होते ही गुरु खिलखिलाकर हंस दिए। बोले- अरे तो हमसे पूछ लेते, हम किस मर्ज की दवा हैं? गुरु का इशारा मिलते ही सवाल परोस दिया।

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सिस्टम में एक बिहार वाले साहब हैं। पिछले कई सालों से व्यवस्था को साधने की कोशिश कर रहे हैं। बेचारे जब भी पूरा गुणा-गणित लगाकर अपना फार्मूला सेट करते हैं, अचानक समीकरण पलट जाता है। आखिर इनका जोड़-घटाव पूरी तरह फिट बैठता क्यों नहीं? गुरु संकेत समझ गए। बोले- देखो, जिन महोदय की तुम बात कर रहे हो, उनके पैर में चक्र है।

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लिहाजा एक जगह टिक कर रहना उनके काल-क्रम में नहीं है। जहां तक उनके समीकरण की बात है, तो एक कंफ्यूजन उन्हें अपने अध्ययन काल से है। अब तक नहीं समझ पाए कि वह साहित्य के विद्यार्थी हैं या विज्ञान के। लिहाजा कई बार माहौल से उलट व्याख्यान दे देते हैं। सभा मंडली को इस बात का पूरा यकीन हो जाता है कि जानबूझकर गुस्ताखी की गई है।

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रही-सही कसर साहब का सोशल मीडिया प्रेम पूरा कर देता है। टीवी पर पहले एक विज्ञापन आता था, जिसमें एक ब्रांड के प्रचार में कहा जाता था- शौक बड़ी चीज है। देखने वाले हर शख्स को पता था कि यह खतरनाक है। शायद इसके पीछे शौक के लिए खतरे की चुनौती स्वीकार करने का संदेश था। साहब का मिजाज भी कुछ ऐसा ही है।

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बार-बार खतरे के मुहाने पर खड़े होकर शौक जाहिर करते रहते हैं। कई बार कुछ साथ के लोग सहयोग में योग खराब कर देते हैं। बहरहाल, साहब के साथ अच्छी बात यह है कि कुछ दिनों की तन्हाई के बाद अपने को कूल कर लेते हैं। गुरु की सभा से उठकर चलना शुरू किया तो सवाल का जवाब साथ था।

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