गुरु पूरे रौ में थे। नाराजगी परिवार से थी। सवाल, व्यवस्था पर उठा रहे थे। शायद परिवार के खिलाफ सार्वजनिक टिप्पणी से बच रहे थे। लिहाजा, पूरी बात सिस्टम पर आरोपित कर बता रहे थे। वक्त दोपहर का था। परिवार के पुरुष काम पर निकल गए थे। महिलाएं बच्चों के साथ कमरे में थीं। ऐसे में गुरु के पास पीड़ा सुनाने का बेहतरीन अवसर था। गुरु इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे।
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थोड़ी देर उपमा, उपमान में रहने के बाद असल बात सामने आ गई। बढ़ती उम्र के साथ गुरु के हाथ से परिवार का मालिकाना हक निकल रहा था। पद के नए दावेदार आ गए थे। गुरु को यह रास नहीं आ रहा था। इसलिए अपनों पर बेइंतहा भड़के हुए थे। पहले दिल की भड़ास निकाली। फिर सहज होकर श्रोता की सुध ली। बोले-और बताओ। क्या चल रहा था? सवाल आ गया था। सो, जवाब देना जरूरी था। कहा- सब ठीक है गुरु। अभी तो बदलाव का दौर है। गुरु समझ गए। बातचीत किस दिशा में बढ़ रही है? बात आगे बढ़ाई। हां, बदलाव तो हो रहे हैं, लेकिन इस बदलाव में भी बड़े खेल हैं। तुम तो समझते ही हो। प्रतिउत्तर में सिर हिलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
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गुरु ने शायद इस पर ध्यान नहीं दिया। अपनी बात जारी रखी। वनांचल राज्य के खाकी ब्रिगेड में अंदरखाने जबरदस्त गेम चल रहा है। मैदान में कोई पलटा, तो क्यों? किसी ने किसी को पलटा तो क्यों? यह समझना ही असली खेल प्रेमी होने की पहचान है। हर बदलाव में संबंधों का अनुराग बड़ा मायने रखता है। वक्त-वक्त की बात है। कभी नाव पर गाड़ी और कभी गाड़ी पर नाव।
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एक समय था, जब पलटने वाले की गर्दन पलटाने वाले के हाथ आ गई थी। कहा जाता है कि मुश्किल वक्त में दूसरे ने पहले पर कोई रहम नहीं दिखाया। अलबत्ता इस बात की पूरी कोशिश की कि कहीं से राहत न मिल जाए। वक्त बदलते ही पहले वाले ने बकाया हिसाब बराबर करने की शुरुआत कर दी। घर की सुरक्षा से हटाकर पटरी की रखवाली में लगा दिया। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इस फेरबदल में पीड़ित की श्रेणी में खड़े खिलाड़ी से बहुतेरे को कोई हमदर्दी नहीं। दरअसल, मैदान में जिन्हें पलटा गया, वह न तो किसी के सगे हैं और ना ही उनका कोई सगा है।
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विपत्ति के समय खुलने वाले प्रार्थना स्थल के हर दरवाजे की कुंडी वह खुद से लगाकर आगे बढ़े हैं। लिहाजा फिलहाल कहीं से राहत की उम्मीद नहीं है। कहा जाता है कि मौजूदा बदलाव का मार्ग महकमे से उठी सुर्खियों ने प्रशस्त कर दिया है। गुरु जोश में थे। प्रवचन सुन सिर खुजलाते, सोचते हुए निकला कि गुरु आखिर पलटा… पलटा… क्यों किए जा रहे हैं।
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