रांची: झारखंड के पुलिस महानिदेशक (DGP) अनुराग गुप्ता (1989 बैच के झारखंड कैडर के आईपीएस अधिकारी) को मई माह का वेतन प्राप्त नहीं हुआ है। यह स्थिति केंद्र और राज्य सरकार के बीच उनके सेवा अवधि को लेकर चल रहे विवाद के कारण उत्पन्न हुई है। इस विवाद का मूल कारण उनके सेवानिवृत्ति तिथि की अलग-अलग व्याख्याएं हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी सेवा को 30 अप्रैल 2025 को समाप्त माना है, जबकि झारखंड सरकार ने उन्हें पद पर बनाए रखने का फैसला किया है।
इस मामले में राजनीति भी शुरू हो गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा का कहना है कि जब तक महालेखाकार की ओर से पे स्लिप जारी नहीं होगा, तब तक वेतन कैसे मिल सकता है। दूसरी ओर जेएमएम का कहना है कि मामला ज्यूडिशियल है, इसलिए इस पर अधिक टिप्पणी करना सही नहीं होगा। इस मामले में बीजेपी का कहना है कि कानून सर्वोपरि है। महालेखाकार नियमानुसार काम करते है।
जेएमएम के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे का कहना है कि यह मामला प्री ज्यूडिश है, इस मामले में बाबू लाल मरांडी ने भी याचिका दायर की है। इसलिए अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए। हमारे पास भी इस मामले के पक्ष में तर्क है। इस तर्क के पक्ष में उन्होंने आरके अस्थाना के मामले का जिक्र किया। उधर, बीजेपी के विधायक सी पी सिंह का कहना है कि कानून से बाहर जाकर कोई कुछ नहीं कह सकता है। एक महालेखाकार राज्य सरकार के अधीनस्थ नहीं आता है, उनका काम लेखा-जोखा रखने का है।
वेतन भुगतान में देरी:
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, पुलिस महानिदेशक कार्यालय के ड्राइंग एंड डिसबर्सिंग ऑफिसर (DDO) ने मई महीने के वेतन का बिल परियोजना भवन ट्रेजरी को प्रस्तुत नहीं किया है। इसके परिणामस्वरूप, ट्रेजरी ने अनुराग गुप्ता के मई माह के वेतन का भुगतान नहीं किया। इसके अलावा, प्रमुख लेखा नियंत्रक कार्यालय ने भी सिस्टम को अपडेट कर दिया है, जिसमें 1 मई से अनुराग गुप्ता का सेवा अवधि समाप्त होने के कारण उनका वेतन शून्य दर्शाया गया है।
केंद्र और राज्य सरकार के बीच संघर्ष:
यह विवाद तब शुरू हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 22 अप्रैल को झारखंड के मुख्य सचिव को एक पत्र भेजा, जिसमें अनुराग गुप्ता की सेवानिवृत्ति तिथि 30 अप्रैल 2025 बताई गई थी। मंत्रालय ने राज्य सरकार से उन्हें सेवा से मुक्त करने का आदेश दिया था।
हालांकि, झारखंड सरकार ने इस निर्देश का पालन करने से इंकार कर दिया है और अपने नियमों और प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा है कि अनुराग गुप्ता को पद पर बनाए रखा जा सकता है। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच कई पत्रों का आदान-प्रदान हुआ है।
केंद्र का दावा:
केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कहा है कि अनुराग गुप्ता की सेवा का विस्तार “संविधान के खिलाफ” और सुप्रीम कोर्ट के पुलिस नियुक्तियों के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। केंद्र का यह भी कहना है कि सेवा विस्तार न केवल असंगत है, बल्कि यह राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करता है, जो सिविल सेवा और पुलिस नेतृत्व की अवधि से संबंधित हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और बीजेपी का दृष्टिकोण:
इस मामले पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने “वेट एंड वॉच” की नीति अपनाई है, और कहा है कि इस पर अधिक टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है। पार्टी का कहना है कि उनके पास अनुराग गुप्ता को नियुक्त करने के लिए वैध कारण हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कानून से बड़ा कुछ नहीं है और इस मामले में कानून का पालन किया जाना चाहिए।
इस स्थिति ने प्रशासनिक समन्वय और कानूनी स्पष्टता पर सवाल खड़े कर दिए हैं और यह देखना होगा कि न्यायपालिका इस मुद्दे पर क्या निर्णय देती है।