मनोहरपुर: जैसे-जैसे बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र का मतदान करीब आ रहा है, 55 (एसटी) मनोहरपुर सीट पर राजनीतिक मुकाबला और भी रोचक हो गया है। इस समय यहां प्रमुख रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और आजसू पार्टी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। हालांकि, चुनावी मैदान में निर्दलीय उम्मीदवारों समेत कुल 10 प्रत्याशी भी अपनी-अपनी ताकत दिखा रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी 23 नवंबर को इस चुनावी समर में कौन बाजी मारेगा।
झामुमो के परंपरागत वोट बैंक पर खतरा
राजनीतिक विश्लेषक इस बार के चुनावी परिप्रेक्ष्य में आजसू पार्टी की आक्रामक चुनावी रणनीति को एक चुनौती मानते हैं। उनका कहना है कि आजसू ने सुदूर इलाकों में सक्रियता बढ़ाई है, खासकर उन गांवों में, जो झामुमो का परंपरागत गढ़ माने जाते हैं। गोइलकेरा और गुदड़ी प्रखंड के वनग्रामों में आजसू की मजबूत पकड़ वोटों को प्रभावित कर सकती है। आजसू पार्टी के केंद्रीय सचिव बिरसा मुंडा की सक्रियता इन इलाकों में एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकती है।
2009 में त्रिकोणीय मुकाबला: भाजपा की हुई थी ऐतिहासिक जीत
साल 2009 में त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को पहली बार मनोहरपुर सीट पर विजय मिली थी। उस समय भाजपा के गुरुचरण नायक ने 27,360 वोट हासिल किए थे, जबकि झामुमो के नवमी उरांव को 21,090 और यूजीडीपी के जोबा माझी को 20,828 वोट मिले थे। उस चुनाव में भाजपा की जीत की वजह त्रिकोणीय मुकाबला था, जिसके कारण झामुमो के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी हुई थी।
आजसू का नया दांव: एनडीए का मनोहरपुर पर फोकस
इस बार एनडीए ने मनोहरपुर में आजसू को उम्मीदवार दिया है, और पार्टी ने इस क्षेत्र में विशेष ध्यान केंद्रित किया है। आजसू का अभियान खासकर झामुमो के मजबूत गढ़ों पर फोकस है। गोइलकेरा और गुदड़ी के आदिवासी इलाकों में वोटों को साधने के लिए आजसू के कार्यकर्ताओं की मेहनत महत्वपूर्ण होगी।
झामुमो के लिए चुनौती: मैदान में कई बागी और निर्दलीय उम्मीदवार
झामुमो के लिए इस बार चुनावी समीकरण थोड़ा कठिन हो सकता है, क्योंकि गोइलकेरा और गुदड़ी प्रखंडों में आदिवासी हो समाज महासभा और एनसीपी के उम्मीदवारों की सक्रियता बढ़ी है। पातोर जोंको और सबन हेम्ब्रम जैसे उम्मीदवारों के मैदान में होने से झामुमो को इन इलाकों में अपनी पकड़ बनाए रखने में मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा, भारत आदिवासी पार्टी के सुशील बारला और झामुमो के बागी सलन डहांगा जैसे नेता भी चुनावी माहौल में इफेक्ट डालने के लिए तैयार हैं।आजसू के बागी दिलबर खाखा, जदयू जिलाध्यक्ष बिश्राम मुंडा और अन्य छोटे दलों के प्रत्याशी भी एनडीए के वोट बैंक पर असर डाल सकते हैं। चुनाव के आखिरी दिनों में प्रत्याशी अपने प्रभावी मैनेजमेंट और डैमेज कंट्रोल के जरिए सीट की ओर बढ़ सकते हैं।
मनोहरपुर में चावल, पैसे और प्रलोभन की राजनीति
मनोहरपुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनावी साजिशें भी तेज हो चुकी हैं। कई जगहों पर वोटरों को चावल, पैसे और अन्य प्रलोभन देकर चुनावी समीकरण बदलने की कोशिश की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा और जागरूकता की कमी का फायदा उठाते हुए कुछ लोग वोटों के सौदागर बने हुए हैं। चुनाव के दौरान कई उम्मीदवारों द्वारा देगची, बर्तन, पैसे और चावल देने के वादे किए जाते हैं, जिससे वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश की जाती है। वोटरों को इस प्रकार के प्रलोभनों में फंसने से बचना चाहिए। अपनी पसंद और विवेक से वोट डालना हर नागरिक का अधिकार है और यही लोकतंत्र की असली ताकत है।
मनोहरपुर सीट पर इस बार झामुमो और आजसू के बीच सीधी टक्कर हो रही है, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों की सक्रियता इस मुकाबले को और भी दिलचस्प बना रही है। 23 नवंबर को होने वाले चुनाव में यह देखना होगा कि किस पार्टी या उम्मीदवार के लिए यह समीकरण काम करता है। क्या आजसू की आक्रामकता झामुमो के परंपरागत वोट बैंक को तोड़ पाएगी या फिर झामुमो अपनी पकड़ बनाए रखने में सफल होगा, यह चुनावी परिणामों से ही स्पष्ट होगा।