Ranchi (Jharkhand) : झारखंड हाई कोर्ट से झारखंड राज्य वन विकास निगम (JFDC) को गुरुवार को बड़ी राहत मिली है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने निगम की सात अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ द्वारा संविदा कर्मियों को नियमित करने के आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश JFDC द्वारा दायर अपीलों के पक्ष में आया, जिसकी पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रूपेश सिंह ने की। कोर्ट ने माना कि नियुक्ति की मूल प्रकृति, अवधि और प्रक्रिया को देखते हुए नियमितीकरण का आदेश कानूनी रूप से असंगत था।
अविभाजित बिहार के जमाने से उलझी थी संविदा नियुक्ति की गुत्थी
इस प्रकरण की जड़ें वर्ष 1987-88 की संविदा नियुक्तियों से जुड़ी हैं, जब बिहार राज्य वन विकास निगम के अंतर्गत वन उत्पाद ओवरसीयर के रूप में कुछ कर्मचारियों की तीन माह के लिए नियुक्ति हुई थी। ये कर्मी कुछ कारणों से 2003 तक कार्यरत रहे, जबकि उनकी सेवा औपचारिक रूप से समाप्त नहीं की गई थी। झारखंड राज्य के गठन के बाद बिहार के वन विकास निगम ने झारखंड सरकार को पत्र लिखकर इन कर्मचारियों की सूची भेजी और सेवा समाप्त करने की सिफारिश की। इसके बाद JFDC ने सभी कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी।
सुप्रीम कोर्ट से लेकर दोबारा हाई कोर्ट तक चला मामला
इस सेवा समाप्ति के खिलाफ कर्मचारियों ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की, लेकिन वह और उसकी अपील दोनों खारिज हो गईं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दाखिल की गई, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। बाद में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कुछ कर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन दाखिल की, जिसे बाद में वापस ले लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑब्जर्वेशन में कर्मियों को झारखंड हाई कोर्ट में पक्ष रखने की सलाह दी।
2014 में फिर कोर्ट की शरण में गए कर्मी, एकल पीठ से मिला था समर्थन
वर्ष 2014 में हटाए गए कर्मियों ने पुनः हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की। इसके बाद हाई कोर्ट ने वर्ष 2015 के झारखंड सेवा नियमावली के तहत उनके नियमितीकरण पर विचार करने का निर्देश सरकार को दिया। हालांकि JFDC ने इन कर्मियों को नियमित नहीं किया, जिसके विरोध में उन्होंने दोबारा हाई कोर्ट की एकल पीठ में याचिका दायर की। एकल पीठ ने वर्ष 2024 में कर्मचारियों के पक्ष में आदेश देते हुए उन्हें नियमित करने को कहा, जिसे JFDC ने खंडपीठ में चुनौती दी और अब खंडपीठ ने एकल पीठ का आदेश निरस्त कर दिया है।