Ranchi : झारखंड में दशकों से लंबित जमीन के सर्वे के मामले में गुरुवार को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कड़ा रुख अख्तियार किया। चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गोकुल चंद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से मौखिक रूप से पूछा कि जब राज्य में भूमि सर्वेक्षण का कार्य शुरू हो चुका है, तो इसे अब तक पूरा क्यों नहीं किया गया है? कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि समय पर लैंड सर्वे पूरा होने से आम लोगों के साथ-साथ सरकार की जमीनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी।
खंडपीठ ने हैरानी जताते हुए कहा कि झारखंड में भूमि सर्वेक्षण का कार्य वर्ष 1975 में शुरू हुआ था और आज 50 साल बीत जाने के बाद भी यह अधूरा है। कोर्ट ने राज्य सरकार को एक स्पष्ट समय-सीमा (टाइमलाइन) देने का निर्देश दिया है, जिसमें वह बताए कि झारखंड में लैंड सर्वे का काम कब तक पूरी तरह से समाप्त कर लिया जाएगा। इसके साथ ही, कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि लैंड सर्वे को पूरा करने में जो भी कठिनाइयां आ रही हैं, उन्हें जल्द से जल्द दूर किया जाए।
राजस्व सचिव को शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश
मामले की अगली सुनवाई में कोर्ट ने राजस्व सचिव को व्यक्तिगत रूप से शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने उनसे सीधे पूछा है कि झारखंड में जमीन के सर्वे का कार्य कब तक मुकम्मल कर लिया जाएगा। इससे पहले, महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि झारखंड में लैंड सर्वे का काम प्रगति पर है और कुछ जिलों में यह कार्य पूरा भी हो चुका है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि तकनीकी कर्मचारियों की कमी के कारण सर्वेक्षण कार्य में अपेक्षित तेजी नहीं आ पा रही है।
1932 के बाद नहीं हुआ व्यापक सर्वे
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि झारखंड में आखिरी बार व्यापक भूमि सर्वेक्षण वर्ष 1932 में हुआ था। इसके बाद, वर्ष 1980 से भूमि सर्वे की प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई, लेकिन यह अब तक अधूरी है। पिछली सुनवाई में सरकार ने कोर्ट को बताया था कि राज्य के दो जिले, लातेहार और लोहरदगा में सर्वे का काम पूरा हो गया है। अब हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में तेजी लाने और एक निश्चित समय-सीमा के भीतर इसे पूरा करने का सख्त निर्देश दिया है।