जमशेदपुर : इस बार झारखंड की हॉट सीट बनी सरायकेला विधानसभा क्षेत्र, जहां जेएमएम और बीजेपी के बीच एक रोचक और चुनौतीपूर्ण मुकाबला हो रहा है। यहां तीन मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। भाजपा प्रत्याशी चम्पाई सोरेन खुद ही पूर्व में मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वहीं इस सीट को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। ये सिर्फ एक चुनावी सीट नहीं है; यह तीनों नेताओं के लिए एक पहचान की लड़ाई बन गई है। सभी लोग इंतजार कर रहे हैं उस दिन का जब परिणाम घोषित होंगे और यह जानने के लिए बेचैन हैं कि इस बार सरायकेला की किस्मत का फैसला कौन करेगा।
इस चुनाव में उम्मीदवार नहीं, बल्कि पार्टियों के बीच सीधी टक्कर हो रही है। कमल और तीर-धनुष की इस लड़ाई में कौन बनेगा विधायक, यह सवाल बहुत अहम है। सरायकेला में जो हो रहा है, वह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि यहां के लोगों की भावनाओं और आशाओं का भी सवाल है। सरायकेला में इस बार पुराने चेहरे ही फिर से मैदान में हैं। मतदाता को चंपई सोरेन या गणेश महली में से किसी एक को चुनना है। पिछले चुनावों में भी यही दो चेहरे आमने-सामने थे। चंपई, जो कि जेएमएम के पक्ष में रहे हैं, और गणेश महली, जो बीजेपी से थे। लेकिन इस बार चंपई बीजेपी से और गणेश महली जेएमएम से चुनाव लड़ रहे हैं। यानि, एक तरह से राजनीति का यह घुमावदार सफर अब एक नई दिशा में मुड़ चुका है।
सरायकेला की आबादी का एक खास पहलू यह है कि यहां आदिवासी जनसंख्या 33 प्रतिशत है, जबकि कुड़मी 13 प्रतिशत और मुस्लिम 3.8 प्रतिशत हैं। आदिवासी वोट आमतौर पर जेएमएम के साथ माने जाते हैं, लेकिन कुड़मी वोटों का बिखराव भी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
चंपई सोरेन, जो कि लंबे समय से विधायक रहे हैं, अब अपनी इनकमबैंसी का सामना कर रहे हैं। चुनावी माहौल में बदलाव लाने का श्रेय असम के पूर्व मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को जाता है। उन्होंने चंपई को जेएमएम से तोड़कर बीजेपी में शामिल किया, और इसके बाद से राजनीति में एक नया हड़कंप मच गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी गणेश महली को अपने पाले में कर लिया, जिससे चुनावी खेल और भी रोचक हो गया है।
भाजपा की जीत का मतलब होगा कि हिमंता बिस्वा सरमा की रणनीति सफल रही, वहीं अगर गणेश महली जीतते हैं, तो हेमंत सोरेन की कूटनीति को सराहा जाएगा। इस प्रकार, इन दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा सरायकेला में दांव पर है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दोनों ही नेता अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
चंपई सोरेन का नाम भले ही चुनाव में सफल रहा हो, लेकिन उनकी जीत का अंतर हमेशा ही नजदीकी रहा है। 2014 के चुनाव में उन्हें 94,746 वोट मिले, जबकि गणेश महली को 93,631 वोट मिले थे। इस बार चंपई को यह चुनौती स्वीकार करनी होगी कि क्या वे आदिवासी वोटों को फिर से अपने पक्ष में ला पाएंगे। गणेश महली के लिए भी स्थिति आसान नहीं है। उन्हें भाजपा के एक कद्दावर नेता का समर्थन प्राप्त है, जिसने उन्हें जेएमएम से टिकट दिलवाने में मदद की है।
चंपई सोरेन की छवि आदिवासी समुदाय में काफी मजबूत है, लेकिन भाजपा का आधार भी शहरों में है। आदित्यपुर और गम्हरिया जैसे क्षेत्रों में शहरी वोटरों की संख्या अच्छी है। अगर चंपई ग्रामीण इलाकों से वोट जुटाने में सफल होते हैं, तो यह भाजपा के लिए चुनौती साबित हो सकती है।
आखिरकार, सरायकेला में क्या होगा—कमल खिलेगा या तीर-धनुष चलेगा? इस पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं, और राजनीतिक हलचलों के बीच इस चुनाव का परिणाम कई लोगों की उम्मीदों और सपनों को प्रभावित करने वाला होगा।