Ranchi: झारखंड के बहुचर्चित शराब घोटाले में आईएएस विनय चौबे और संयुक्त उत्पाद आयुक्त गजेंद्र सिंह की गिरफ्तारी के बाद झारखंड की सियासत में उबाल है। एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की जांच में अब तक 100 करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले का खुलासा हो चुका है और रकम के और बढ़ने की संभावना है। इस बीच झारखंड की सियासी तपिश बढ़ गई है।
कैसे हुआ घोटाला
इस घोटाले में सामने आया है कि झारखंड की नई उत्पाद नीति के तहत सात प्लेसमेंट एजेंसियों को चुना गया था, लेकिन इनका चयन नियमों को ताक पर रखकर किया गया। एसीबी की रिपोर्ट बताती है कि कई कंपनियों ने फर्जी बैंक गारंटी के आधार पर करोड़ों रुपये की शराब बेची और उसके बदले में सरकार को रकम नहीं लौटाई।
फर्जी बैंक गारंटी से 38 करोड़ का खेल
हजारीबाग की विजन हॉस्पिटैलिटी और धनबाद की मार्शन इनोवेटिव सिक्योरिटी नाम की कंपनियों ने 12 और 25 करोड़ रुपये की फर्जी बैंक गारंटी जमा कर शराब की बिक्री की। इन कंपनियों से 38 करोड़ रुपये की फर्जी गारंटी का मामला अब सामने आ चुका है। आश्चर्य की बात यह है कि इन गारंटियों की समय रहते जांच तक नहीं की गई, जिससे बकाया की वसूली नहीं हो पाई।
और भी कंपनियां घोटाले में संलिप्त
जांच में खुलासा हुआ है कि ये सिर्फ दो नहीं, बल्कि अन्य पांच कंपनियां भी इस घोटाले में शामिल हैं। इन सभी कंपनियों ने शराब बेचकर पैसा सरकार को जमा नहीं किया, जिससे बकाया राशि लगातार बढ़ती गई। इस पूरे मामले में गिरफ्तार आईएएस अफसर को इस फर्जीवाड़े की जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
राजनीतिक घमासान और विपक्ष का आरोप
शराब घोटाला सामने आने के बाद झारखंड में राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। बीजेपी और आजसू पार्टी जैसे विपक्षी दल सरकार पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि सरकार ने खुद आगे बढ़कर मामले की जांच कराई और घोटाले में शामिल अधिकारियों को गिरफ्तार करवाया। यह घोटाला अफसर शाही का नतीजा बताया जा रहा है। विपक्षी दल एसीबी की कार्रवाई पर ही सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या विपक्षी दल घोटाले बाज अधिकारियों को बचाना चाहते हैं। या फिर वह घोटालेबाज अधिकारियों पर हुई कार्रवाई से चिढ़ रहे हैं।
सवालों के घेरे में अफसर शाही
शराब घोटाले में सामने आए तथ्यों ने झारखंड की राजनीति को गर्मा दिया है। अफसरशाही की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। अगर जांच में और भी अधिकारियों के नाम सामने आते हैं तो इसका सीधा असर अफसरशाही की साख पर पड़ सकता है।
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