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Jharkhand student union election : झारखंड के विश्वविद्यालयों में सात साल से नहीं हुआ छात्र संघ चुनाव, छात्रों में असंतोष

छात्र संगठनों का स्पष्ट आरोप है कि यह स्थिति राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की मिलीभगत और उदासीनता का ही नतीजा है।

by Reeta Rai Sagar
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Ranchi (Jharkhand): झारखंड के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव पिछले सात वर्षों से नहीं कराए गए हैं, जिससे छात्रों में गहरा असंतोष व्याप्त है। आखिरी बार वर्ष 2019 में छात्र संघ के चुनाव हुए थे, लेकिन उसके बाद से यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी तरह से ठप पड़ी हुई है। इसके कारण न केवल विश्वविद्यालयों में छात्रों की आवाज कमजोर हुई है, बल्कि छात्र हित से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दे भी अनसुने रह गए हैं।

लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी
छात्रों का कहना है कि रांची विश्वविद्यालय सहित राज्य के सभी सात प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव का न होना विश्वविद्यालय प्रशासन की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। उनका यह भी मानना है कि यह स्थिति लोकतंत्र के कमजोर होते मूल्यों की ओर भी इशारा करती है। वर्ष 2019 में छात्र संघ चुनाव संपन्न होने के बाद, वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। उस दौरान चुनाव न कराने का कारण महामारी को बताया गया, लेकिन महामारी का प्रकोप कम होने के बाद भी चुनाव प्रक्रिया को दोबारा शुरू नहीं किया गया है।

छात्र संगठनों में गहरा आक्रोश
इस उदासीनता के चलते विभिन्न छात्र संगठनों और छात्र प्रतिनिधियों में गहरी नाराजगी देखने को मिल रही है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में ऑफलाइन कक्षाएं, परीक्षाएं और अन्य गतिविधियां सामान्य रूप से संचालित हो रही हैं, तो छात्र संघ चुनाव को लेकर इतनी सुस्ती क्यों बरती जा रही है? छात्र संगठनों का स्पष्ट आरोप है कि यह स्थिति राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की मिलीभगत और उदासीनता का ही नतीजा है।

कार्यकाल समाप्त, फिर भी पद पर बने प्रतिनिधि
कुछ विश्वविद्यालयों में तो अभी भी वर्ष 2019 में चुने गए प्रतिनिधियों से ही काम चलाया जा रहा है, जबकि उनका कार्यकाल कब का समाप्त हो चुका है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बिना किसी वैध जनादेश के ये प्रतिनिधि किस अधिकार से छात्रों की समस्याओं को उठाने और उनका समाधान करने का कार्य कर रहे हैं? यह स्थिति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का सरासर उल्लंघन है, बल्कि विश्वविद्यालयों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। छात्र संगठनों का तर्क है कि यह सीधे तौर पर छात्रों के अधिकारों का हनन है।

प्रशासन का नामांकन प्रक्रिया का तर्क
कुछ विश्वविद्यालयों ने छात्र संघ चुनाव न कराने के पीछे यह तर्क दिया है कि जब तक नए शैक्षणिक सत्र में नामांकन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक छात्र संघ चुनाव कराना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। रांची विश्वविद्यालय और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि मौजूदा शैक्षणिक सत्र में नामांकन की प्रक्रिया सितंबर के अंत तक पूरी होने की संभावना है, और उसके बाद ही छात्र संघ चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। हालांकि, छात्र संगठनों का इस पर पलटवार करते हुए कहना है कि यदि विश्वविद्यालय प्रशासन वास्तव में इच्छुक होता, तो समय रहते नामांकन प्रक्रिया को तेज किया जा सकता था और चुनाव की तैयारी पहले से ही शुरू की जा सकती थी।

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