Pritish Nandi Demise: जाने-माने लेखक, फिल्मकार, कवि और पत्रकार प्रीतीश नंदी का बीती रात निधन हो गया है। खबरों के मुताबिक, 73 वर्षीय पद्मश्री से सम्मानित नंदी का निधन उनके मुंबई आवास पर कार्डियक अरेस्ट से हुआ। 1980 के दशक में, नंदी के नाम भारतीय कला में स्थापित नगीनों को डिस्कवर करने का श्रेय जाता है, जिनमें परेश मैती, बैजू पार्थन और बोस कृष्णमाचारी शामिल हैं।
युवा संपादक के पूर में बनाई पहचान
नंदी ने 27 साल की उम्र में ‘द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ के संपादक के रूप में पदभार संभाला और एक युवा संपादक के रूप में अपनी पहचान बनाई। कुछ वर्षों के भीतर ही नंदी ने खुद को एक ऐसे पत्रकार के रूप में स्थापित किया, जो ऐसे विषयों को कवर करते थे, जिससे राष्ट्रीय समाचार का एजेंडा निर्धारित होता था। उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में ‘गॉडमैन’ चंद्रास्वामी, ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी (जानकी वल्लभ) पटनायक के निजी जीवन, अलबामा में अमेरिकी भाड़े के फ्रैंक कैम्पर के आतंकी शिविर और किशोर कुमार के साथ एक यादगार साक्षात्कार की कहानियां शामिल थीं।
निडर पत्रकार थे नंदी
1983 से 1991 के बीच वीकली में नंदी के सहयोगी रहे शैलेश कोट्टारी ने बुधवार को कहा कि वह एक निडर पत्रकार थे। हमने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों, मुख्यमंत्रियों, खुफिया एजेंसियों का सामना किया और वह उन पत्रकारों के साथ खड़े रहे, जिन्होंने उन कहानियों को उजागर किया।
उनकी समकालीन रहीं शोभा डे ने कहा, ‘प्रीतिश में बोंग एरोगेंस और सेल्फ कॉन्फिडेंस का मिक्स था। उनका ब्रांड बहुत दिलचस्प था – वह अपनी ब्रांडिंग के मास्टर थे। उनके पास कहानियों को पिरोने का एक अलग तरीका था – कुछ लोग उन्हें इंटेलेक्चुअल समझते थे और कई उनका मजाक उड़ाया थे, लेकिन उन्होंने परवाह नहीं की’।
अमिताभ बच्चन के इंटरव्यू का किस्सा
नंदी के लिए कई कवर शूट करने वाले फोटो जर्नलिस्ट प्रदीप चंद्रा ने कहा, ‘उनके पास एक शार्प विजुअल सेंस थी। मुझे याद है कि मुझे रात 12 बजे अमिताभ बच्चन को शूट करना था। मैं लेखक के साथ प्रतीक्षा में उनके घर गया था। वहां पहुंचने पर मुझे एहसास हुआ कि मैं लाइट लेकर नहीं आया। रोशनी के बिना उसे शूट करना मुश्किल होगा, इसलिए मैं बस बंगले के लॉन में पहुंचा, जहां साक्षात्कार चल रहा था। वहां से मैं कमरे में अमिताभ बच्चन को संवाददाता से बात करते हुए देख सकता था। अंधेरा था, लेकिन मुझे कुछ फ्रेम मिले। अगले दिन जब डार्करूम असिस्टेंट ने लॉन से ली गई तस्वीरों की कुछ प्रतियां छापीं और उन्हें नंदी को सौंप दिया, तो वह बहुत खुश थे, क्योंकि वे बहुत असामान्य थे। उन तस्वीरों में से एक को कवर पर प्रकाशित किया गया था और नंदी ने कहानी को शीर्षक दिया था, ‘अ क्वाइट कमबैक’।
कई अवॉर्ड से सम्मानित किए जा चुके है नंदी
1990 के दशक की शुरुआत में समाचार टेलीविजन ने लोकप्रियता हासिल की। नंदी, जिन्होंने अपने शौक और जुनून के साथ काम किया, पहले टेलीविजन पर और फिर अंततः फिल्मों में चले गए। नंदी शिवसेना की ओर से राज्यसभा के सदस्य भी रहे और एनिमल राइट के एडवोकेट भी रहे। नंदी को पद्मश्री, द ई एम फॉस्टर लिटरेरी अवॉर्ड, द यूनेस्को एशिया पेसिफिक हेरिटेज अवॉर्ड, ह्यूमन सोसायटी की ओर से द इंटरनेशनल एसोसिएशन अवॉर्ड और बांग्लादेश से द फ्रेंड ऑफ लिबरेशन वॉर ऑनर जैसे कई अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।