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Jharia Assembly Seat: धनबाद की झरिया विधानसभा सीट पर फिर क्षत्राणियां आमने-सामने

1977 से है एक परिवार का दबदबा, रागिनी ने संभाल रखा है सिंह मेंशन का उत्तराधिकार

by Anand Mishra
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धनबाद : धनबाद जिले से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित झरिया, झारखंड का एक ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है। कभी राजा-महाराजाओं का राज्य हुआ करता था, जिसका प्रमाण आज भी झरिया में मौजूद जर्जर किले हैं। इन खंडहरों से स्पष्ट होता है कि झरिया का इतिहास काफी प्राचीन और राजसी रहा है। अंग्रेजों के आगमन से पहले यहां के शासक राजा-महाराजा थे, जिनकी वंश परंपरा आज भी झरिया में कहीं न कहीं देखी जा सकती है।

झरिया विधानसभा: राजनीतिक सफर


1967 में झरिया विधानसभा का गठन हुआ था, और पहले चुनाव में राजा शिवप्रसाद यहां के विधायक चुने गए थे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और 10,024 वोट हासिल किए थे। इसके विपरीत, जेकेडी उम्मीदवार एसके राय को 7,150 वोट मिले थे। इससे पहले, 1962 में झरिया विधानसभा क्षेत्र ‘जोरापोखर विधानसभा क्षेत्र’ के नाम से जाना जाता था, जहां कांग्रेस के रामनारायण शर्मा विधायक बने थे। उन्होंने सीपीआई के उम्मीदवार बिनोद बिहारी महतो को हराया था।

झारखंड राज्य गठन के बाद का राजनीतिक परिदृश्य


झारखंड के गठन के बाद से झरिया विधानसभा सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है। 2005, 2009 और 2014 के चुनावों में भाजपा ने यहां जीत दर्ज की। हालांकि, 52 साल बाद कांग्रेस ने 2019 में इस सीट पर कब्जा किया, जब पूर्णिमा नीरज सिंह ने भाजपा उम्मीदवार रागिनी सिंह को हराया था। पूर्णिमा सिंह का मुकाबला रागिनी सिंह से था, जो झरिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह की पत्नी हैं। संजीव सिंह, जो पूर्व मेयर नीरज सिंह की हत्या के आरोप में जेल में हैं, 2014 में झरिया से विधायक थे। 2019 के चुनाव में, रागिनी सिंह 10,000 वोटों से हार गईं, लेकिन उन्होंने पिछले पांच सालों में झरिया के राजनीतिक परिदृश्य में खुद को एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया है।

इस बार का चुनी मुकाबला


2024 के झरिया विधानसभा चुनाव में एक बार फिर क्षत्राणियों के बीच संघर्ष होने जा रहा है। कांग्रेस से पूर्णिमा नीरज सिंह और भाजपा से रागिनी सिंह आमने-सामने होंगी। दोनों ही सूर्यदेव सिंह परिवार से ताल्लुक रखती हैं। पूर्णिमा नीरज सिंह, सूर्यदेव सिंह के अनुज राजन सिंह की पुत्रवधू हैं, जबकि रागिनी सिंह, सूर्यदेव सिंह के पुत्र संजीव सिंह की पत्नी हैं।

रागिनी ने खुद को साबित किया है सिंह मेंशन का उत्तराधिकारी


रागिनी सिंह ने पिछले पांच सालों में अपनी भूमिका को साबित किया है कि वह सिंह मेंशन की सही उत्तराधिकारी हैं। उन्होंने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए झरिया के कोयला मजदूरों और आम जनता के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा काफी चुनौतियों से भरी रही है। संजीव सिंह की जेल में उपस्थिति, 2019 के चुनाव में हार, देवर से अनबन और परिवारिक कलह जैसी परिस्थितियों के बावजूद, रागिनी ने हार नहीं मानी। उन्होंने मजदूर संगठन “जनता श्रमिक संघ” की स्थापना की और लगातार झरिया की जनता के साथ अपनी पैठ बनाई।

झरिया का जातिगत समीकरण


झरिया एक शहरी विधानसभा क्षेत्र है, जिसमें ग्रामीण मतदाताओं की संख्या शून्य है। यहां शहरी मतदाताओं की संख्या लगभग 3,02,223 है। अनुसूचित जनजाति मतदाता 25.3% (लगभग 76,462) हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता 20.7% (लगभग 62,560) हैं। इसके अलावा, अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या 3.83% (लगभग 11,575) है। सिंह उपनाम वाले मतदाता 9.1% (लगभग 28,000) हैं, जबकि पासवान, यादव, महतो, भुइयां और प्रसाद भी इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण जातिगत समूहों में आते हैं।

राजनीतिक आंकड़े और भाजपा की पकड़


पिछले सात चुनावों में, झरिया ने छह बार भाजपा को और एक बार कांग्रेस को चुना है। 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पूर्णिमा नीरज सिंह को 50.3% वोट मिले थे, जबकि रागिनी सिंह को 42.7% वोट मिले थे। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झरिया में 61.94% मत मिले, जबकि कांग्रेस को 30.64% मत मिले थे। भाजपा का इस क्षेत्र में लंबे समय से प्रभुत्व रहा है, खासकर सूर्यदेव सिंह के परिवार की वजह से। 1977 से लेकर 1992 तक इस परिवार का झरिया पर नियंत्रण था, और अब रागिनी सिंह इस विरासत को आगे बढ़ा रही हैं।

2024 का चुनावी दंगल


2024 का झरिया विधानसभा चुनाव एक बार फिर कांग्रेस की पूर्णिमा नीरज सिंह और भाजपा की रागिनी सिंह के बीच संघर्ष का गवाह बनेगा। दोनों ही परिवार के सदस्य होने के बावजूद, राजनीतिक मतभेद और प्रतिस्पर्धा ने इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है। झरिया की जनता किसे चुनती है, यह देखना बाकी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस बार का मुकाबला पहले से भी अधिक रोमांचक और कठिन होने वाला है।

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