मुंबई में एक बार फिर भाषा को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं ने एक वॉचमैन की सिर्फ इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि उसने मराठी में बात करने से इनकार किया। यह घटना मुंबई के पवई इलाके की बताई जा रही है, और इसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
क्या है पूरा मामला?
घटना तब हुई जब कुछ मनसे कार्यकर्ताओं ने एक वॉचमैन से मराठी में बात करने को कहा। जब वॉचमैन ने बताया कि वह केवल हिंदी बोल सकता है, तो कार्यकर्ता नाराज हो गए और उसे थप्पड़ मारना शुरू कर दिया। इसके अलावा, उन्होंने जबरदस्ती उससे माफी मंगवाई और राज ठाकरे से माफी मांगने के लिए कहा।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब मुंबई में भाषा को लेकर इस तरह का विवाद सामने आया हो। पिछले हफ्ते भी वर्सोवा इलाके में डी मार्ट स्टोर में एक कर्मचारी को मराठी न बोलने पर पीटा गया था। उस समय भी मनसे के कार्यकर्ताओं ने कर्मचारी को थप्पड़ मारे और उसे कान पकड़कर माफी मांगने के लिए मजबूर किया।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
डी मार्ट की घटना में एक ग्राहक ने स्टोर कर्मचारी से मराठी में बात करने के लिए कहा। जब कर्मचारी ने बताया कि वह केवल हिंदी में बात कर सकता है, तो ग्राहक नाराज हो गया। मामला बढ़ते-बढ़ते मनसे के कार्यकर्ताओं तक पहुँच गया। इसके बाद मनसे के वर्सोवा अध्यक्ष संदेश देसाई ने अपने समर्थकों के साथ स्टोर का दौरा किया और कर्मचारी की पिटाई कर दी।
सोशल मीडिया पर बहस तेज
इन घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद आम लोगों और राजनीतिक दलों में बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे मराठी भाषा के सम्मान की लड़ाई बता रहे हैं, जबकि कई लोग इसे हिंसा और जबरदस्ती का मामला मानते हैं।
भाषा विवाद का राजनीतिक एंगल
राज ठाकरे की पार्टी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, मराठी भाषा और मराठी मानुष के हक की लड़ाई के लिए जानी जाती है। मनसे के कार्यकर्ता पहले भी मुंबई में हिंदी और अन्य भाषाओं के खिलाफ अभियान चला चुके हैं। हालांकि, इस तरह की हिंसक घटनाएँ महाराष्ट्र में भाषाई तनाव को और बढ़ा सकती हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
अब तक इस मामले में पुलिस या प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई की खबर नहीं आई है। हालाँकि, वीडियो वायरल होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि प्रशासन इस पर संज्ञान लेगा।
मुंबई जैसे महानगर में, जहाँ देशभर के लोग आकर बसते हैं, भाषा को लेकर इस तरह की घटनाएँ चिंता का विषय हैं। यह सवाल उठता है कि क्या भाषा किसी व्यक्ति के सम्मान और सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकती है? क्या लोकतांत्रिक देश में किसी को अपनी पसंद की भाषा बोलने का अधिकार नहीं होना चाहिए?