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जानें विपक्षी एकता की कवायद का इतिहास : केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कैसे बनी जनता पार्टी, आखिर क्यों बिखर गया कुनबा

by Rakesh Pandey
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पटना:  बिहार आंदोलन की धरती रही है। राज्य की जमीन से पैदा होने वाले कई आंदोलनों ने राष्ट्रीय रजनीति की दशा और दिशा बदल रही। एक बार फिर बिहार केंद्र की सत्तारूढ़ मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लगा हुआ है।

अगर यह मुहिम रंग लायी तो बीजेपी का अभेद किला ढहते देर नहीं लगेगी। हालांकि इतिहास और वर्तमान की परिस्थितियों के बीच बहुत कुछ बदल जाता है। विपक्षी पार्टियों की सोच का परिणाम जनता की मर्जी पर निर्भर है।

कब-कब हुई विपक्षी पार्टियों को एक करने की मुहिम

बिहार की भूमि को आंदोलन की लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। महात्मा गांधी ने अपने चंपारण आंदोलन की शुरुआत बिहार से की थी। स्वतंत्रता के बाद सत्ता के खिलाफ होने वाले हर आंदोलन को पोषित-पल्लवित करने में बिहार की अहम भूमिका रही।

सन 1967 में केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ छोटे दलों को एकजुट करने की मुहिम डॉ राममनोहर लोहिया ने शुरू की। इस प्रयोग को बिहार ने पूरा समर्थन किया। इसी का नतीजा था कि क्रांति दल जैसी सीमित जनाधार वाली पार्टी के महामाया प्रसाद से तत्कालीन मुख्यमंत्री केबी सहाय चुनाव हार गये थे। इतना ही नहीं 63 सीटें जीतने वाली पार्टी के नेता कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री बनाये गये और तीन सीटें जीत कर आये क्रांति दल के महामाया प्रसाद मुख्यमंत्री बने।

लोहिया ने कहा था कि बड़े दलों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए। इसके बाद सन 1974 में लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ संर्पूण क्रांति का नारा दिया। जेपी के आंदोलन में सभी दलों की सीमाएं टूट गयीं। कई दलों का विलय का वर्ष 1977 में जनता पार्टी बनी और केंद्र से कांग्रेस सरकार की विदाई हुई।

जनता पाटी में जनसंघ का भी विलय हुआ। जय प्रकाश नारायण ने महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ और लोकतंत्र की रक्षा के लिए आंदोलन का शंखनाद किया था। संयोग से इस बार भी विपक्षी दलों के यही तीन प्रमुख मुद्दे हैं।निजी महत्वाकांक्षाओं में बिखर गयी जनता पार्टी जयप्रकाश नारायण के सपनों को पूरा करने के लिए बनी जनता पार्टी कुछ ही समय में बिखर गयी।

इसकी सबसे बड़ी वजह पार्टी में शामिल नेताओं की निजी महत्वकांक्षाएं रहीं। पार्टी के अलग-अलग नेता अपने-अपने राज्यों में अपना अच्छा जनाधार बना चुके थे। लिहाजा एक बड़ी पार्टी के बैनर तले रहकर वह अपने परिवारवाद और क्षेत्रीय राजनीतिक अपेक्षाओं को पूरा करने में खुद को असहज महसूस कर रहे थे। यही कारण था कि एक-एक कर जनता परिवार से अलग-अलग लोग टूटते रहे और देश में अलग-अलग राजनीतिक दल का गठन होता रहा।

अब यह दल एक मंच पर आने को हुए तैयार

नरेद्र मोदी के खिलाफ तैयार हो रहे नये मोर्चे में जेडीयू, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, डीएमके, टीएमसी, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (एमएल), पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस , कांग्रेस, शिवसेना, सपा, जेएमएम और एनसीपी आदि पार्टियां शामिल हो रही हैं। इसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री नेता एम के स्टालिन, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान,डी राजा, दीपांकर भट्टाचार्य और महबूबा मुफ्ती ये सभी नेता गुरुवार को ही पटना पहुंच गये थे।

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे, एनसीपी के शरद पवार और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, सपा के अखिलेश यादव, शिवसेना के उद्धव ठाकरे, जेएमएम के हेमंत सोरेन शुक्रवार को पटना पहुंचे। इनके अलावा, जदयू से नीतीश कुमार और RJD से तेजस्वी यादव बैठक में शामिल होंगे।

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इस बार सूत्रधार बने नीतीश

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पृष्टभूमि आंदोलन से निकले नेता की रही है। इन्होंने जेपी के आंदोलन से अपने राजनीति करियर की शुरुआत की और सक्रियता से भाग लिया था। यही से इनकी राजनीतिक यात्रा शुरू होती है। एक बार फिर देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए नीतीश कुमार संयोजक के रूप में सभी पार्टियों को एकजुट करने में जुटे हुए हैं।

अगस्त 2022 में एनडीए से अलग होने के एक माह बाद उनहोंने विपक्षी दलों को एकजुट करने का अभियान शुरू किया। इसमें राजद नेता तेजस्वी यादव उनके साथ साये की तरह रहे। नीतीश कुमार ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात के बाद इस अभियान की शुरुआत की।

उन्होंने तीन बार दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तमिलाडु, झारखंड आदि राज्यों का दौरा किया। इन राज्यों में गैर भाजपा दलों के नेतृत्व से मुलाकात की. सभी दलों की सहमति से पटना में महा बैठक करने का निर्णय लिया गया।

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