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तुम औरत हो,
लिखो गज़लें चाँद पर,
बातें करो गुलाब की
गुनगुनाते भौंरे की
दिल लुभाते शवाब की ।
लिखो वात्सल्य रस पर
फिर पति परमेश्वर पर
देखो मत झरोखे से बाहर
बस देखो अपना आँगन – घर
मत दिखो अग्रिम पंक्ति में
हाशिये पर ही बने रहो
कलम नहीं है तेरे हिस्से
आटे – हल्दी में सने रहो
रोटी – राजनीति पर
हमेशा चुप्पी पहनो
गर दिखाए कोई आँख
तो तनिक सहमो
याद रखो कि औरत हो तुम
बस रस्ता हो , मुकाम नहीं हो
पुरूष प्रधानी के वातायन में
जीती जागती इंसान नहीं हो
छाया की तरह अपने कद में रहो
गर चाहती हो जीना तो हद में रहो
तुम औरत हो ……..
डॉक्टर कल्याणी कबीर
जमशेदपुर , झारखंड
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