पुरी/Lord Jagannath Rath Yatra: आषाढ़ मास में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले रथ यात्रा उत्सव की तैयारी अब अपने अंतिम चरण पर पहुंच गई है। वहीं, जिले में दादरखुर्द की सबसे पुरानी रथ यात्रा का अपना एक अलग महत्व है। 7 जुलाई को रथ यात्रा का पर्व मनाया जाएगा। इसके साथ ही इसके लिए भगवान जगन्नाथ स्वामी के रथ को भी तैयार किया जा रहा है।
यहां बता दें कि उत्सव शुरू होने से पहले हर साल तीन नए रथ बनाए जाते हैं और एक विशिष्ट तरीके से डिजाइन किए जाते। इन्हें विशेष प्रकार की लकड़ी से बनाया जाता है और स्थानीय कारीगरों द्वारा सजाए-संवारे जाते हैं। रथ यात्रा के लिए रथों के निर्माण पर काम करने वाली टीम के सदस्य बालकृष्ण मोहराना ने कहा कि महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए तीन रथ तैयार किए जाते हैं। महाप्रभु जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए, बलभद्र महाप्रभु के रथ में 14 पहिए और मां सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं। हर साल नयागढ़ के दासपल्ला के जंगलों से नई लकड़ी आती है।
Lord Jagannath Rath Yatra: रथ यात्रा के बाद कहां जाती है लकड़ी
वहीं रथ यात्रा के बाद, रथ की लकड़ी का उपयोग जगन्नाथ मंदिर में हर दिन प्रसाद तैयार करने के लिए जलावन की लकड़ी के रूप में किया जाता है। तीनों रथों के 42 पहिए भक्तों को बेचे जाते हैं। निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से लेकर रथ यात्रा तक दो महीने तक चलता है। सात प्रकार के कारीगर होते हैं और इसमें कम से कम 200 लोग लगते हैं। सब कुछ पारंपरिक रूप से हाथ से बनाया जाता है, किसी आधुनिक उपकरण या मशीनरी का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके साथ ही माप भी प्राचीन प्रणाली में किए जाते हैं, आधुनिक मीट्रिक प्रणाली में नहीं।
Lord Jagannath Rath Yatra: विदेश में मनाया जाता है रथ यात्रा उत्सव
ये भी माना जाता है कि रथ यात्रा या रथ उत्सव पुरी के जगन्नाथ मंदिर जितना ही पुराना है। यह उत्सव पवित्र त्रिदेवों की अपनी मौसी देवी गुंडिचा देवी के मंदिर तक की आगे की यात्रा को दर्शाता है और समापन के साथ होती है आठ दिनों के बाद वापसी यात्रा। वास्तव में, यह त्योहार अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है और पवित्र त्रिदेवों की श्री मंदिर परिसर में वापसी यात्रा के साथ समाप्त होता है। कई भारतीय शहरों के अलावा यह त्योहार न्यूजीलैंड से दक्षिण अफ्रीका और न्यूयॉर्क से लंदन तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
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