Home » Mahashivratri Spacial : देवाधिदेव महादेव की राजनीति, एक अद्भुत नीति

Mahashivratri Spacial : देवाधिदेव महादेव की राजनीति, एक अद्भुत नीति

by Dr. Brajesh Mishra
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

Mahashivratri Spacial : भारतीय संस्कृति का आधार हमेशा आस्था और भावना रहा है। श्रद्धा और विश्वास इसका मूलाधार हैं, और इनकी प्रेरणा से ही हम जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं। भगवान शिव और भवानी के रूप में शिव और पार्वती श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक माने जाते हैं। महाकवि तुलसी ने मानस में लिखा है:

“भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा:स्वान्तः स्थमीश्वरम्।”

यह शेर बताता है कि श्रद्धा और विश्वास के बिना किसी भी धर्म या कार्य को सही ढंग से समझ पाना और उसे आत्मसात करना संभव नहीं है।

महादेव की अद्भुत राजनीति और सावधानी

शंकर को देवों में सबसे महत्त्वपूर्ण इसलिए माना गया क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, ताकि वह संसार के जीवों की रक्षा कर सकें। पार्वती ने जब अपनी मांग के सिन्दूर की रक्षा की बात की, तो शंकर ने उस विष को अपनी जान की परवाह किए बिना कंठ में रोका। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया, लेकिन उन्होंने अपनी प्रिया की मांग की रक्षा की और सबकी प्रशंसा प्राप्त की।

कवि रहीम ने अपने एक दोहे में इस महान कार्य का संकेत करते हुए लिखा:

“मान सहित विष खाई कै, शंभु भए जगदीश।
बिना मान अमृत भखयो, राहु कटायो शीश।।”

यह दोहा महादेव के कष्टों और समर्पण को दर्शाता है। भगवान शिव का शिव अर्थ ही है कल्याणकारी और मंगलपरक, और उनकी राजनीति इसी सिद्धांत पर आधारित है—किसी भी परिस्थिति में समरसता बनाए रखना।

सत्यं शिवं सुन्दरम्: भगवान शिव का दिव्य रूप


शिव का रूप सत्यं शिवं सुन्दरम् में समाहित है। इसका अर्थ है-सत्य, शिव और सुंदरता का एक अद्वितीय मिलाजुला रूप। इन तीनों का समन्वय जीवन को पूर्णता प्रदान करता है, और यही जीवन का असली लक्ष्य है।

कवि सुमित्रानंदन पंत ने इस विचार को इन शब्दों में व्यक्त किया है:

“वही प्रज्ञा का सत्य स्वरूप,
हृदय में बनता प्रणय अपार।
लोचनों में लावण्य अनूप,
लोक सेवा में शिव अविकार।।”

यह शिव का वास्तविक रूप है, जो हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य और लोक सेवा की दिशा में प्रेरित करता है।

शंकर की राजनीति: सामंजस्य और संतुलन की कला


शिव शंकर राजनीति के भी जानकार हैं। कवि तारेश ने अपनी एक सवैया में इसे बहुत सुंदर तरीके से बताया है:

“मूसे पर सांप राखैं, सांप पर मोर राखैं
बैल पर सिंह राखैं, वाको कहाँ भीति है?
पूतन कौ भूत राखैं, भूत कौं विभूति राखैं
छ मुख को गज मुख, यहै बडी नीति है।
काम पर वाम राखैं, विष को पीयूष राखैं,
आग पर पानी राखैं, सोई जग जीति हैं।
कवि तारेश देखो, ज्ञानी शंकर की सावधानी,
सब विधि लायक, पै राखैं राजनीति हैं।”

यह कविता शिव की राजनीति की नीतियों को स्पष्ट करती है, जिनमें सामंजस्य और संतुलन पर बल दिया गया है। शिव ने अपने परिवार में भी ये सिद्धांत लागू किए। चूहा, सर्प, मोर, बैल, सिंह, शिव के वाहन और सभी देवताओं का समन्वय इस नीति का उदाहरण हैं।

शंकर की राजनीति का सिखावन

शिव की राजनीति यह सिखाती है कि विरोधी शक्तियों के बीच संतुलन और सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है। वे यह जानते हैं कि सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी। शिव ने यह सिद्ध कर दिया कि राजनीति केवल कूटनीति नहीं, बल्कि समाज में स्थिरता और समरसता बनाए रखने का कार्य भी है।

आजकल के राजनीतिज्ञ शंकर भगवान से यह सीख ले सकते हैं, क्योंकि शंकर तो आशुतोष हैं, यानी बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले। उनकी नीति जीवन को सही दिशा दिखाने वाली है।

डा जंग बहादुर पाण्डेय’तारेश’
पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
रांची विश्वविद्यालय, रांची
मोबाइल : 9431594318
8797687656
ई-मेल : pandey_ru05@yahoo.co.in

Read Also- Mahashivratri Spacial : शिव महिमा और महामृत्युंजय मंत्र, कैसे महाकाल ने मार्कण्डेय को दिया दीर्घायु का वरदान

Related Articles