Mahashivratri Special: भारतीय संस्कृति में आस्था और भावना का विशेष स्थान है। व्रत और त्योहार न केवल हमारे धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हैं, बल्कि हमारी आत्मा को भी शुद्ध और पवित्र रखते हैं। इन त्योहारों में महाशिवरात्रि का महत्व विशेष है, जो भगवान शिव के आशीर्वाद प्राप्त करने और आत्मा की पवित्रता के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह पर्व आत्मा के शुद्धिकरण और पापों के नाश का मार्ग प्रशस्त करता है।
शिव महिमा : विषपान से महादेव तक का सफर
33 कोटि देवताओं में शंकर को महादेव का पद इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष अपने कंठ में धारण कर, संसार के प्राणियों की रक्षा की। जब पार्वती ने अपनी मांग के सिंदूर को बचाने की बात की, तो भगवान शिव ने बिना किसी भय के विष को अपने कंठ में रोक लिया। उनके इस महान कार्य से उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। उनका यह कृत्य महादेव के रूप में उनकी महिमा को और बढ़ाता है।
कवि रहीम ने भगवान शिव की इस महानता की प्रशंसा करते हुए लिखा है:
“मान सहित विष खाए कै, शंभु भए जगदीश।
बिना मान अमृत भखयो, राहु कटायो सीस।।”
यह शेर भगवान शिव के कल्याणकारी और मंगलकारी रूप को स्पष्ट करता है, जो जीवन को सुंदर और शुद्ध बनाने का कार्य करते हैं।
शिव का सत्यं शिवं सुंदरम : जीवन के तीन मुख्य तत्व
शिव का अस्तित्व सत्यं, शिवं, और सुंदरं के रूप में पूर्णता और सुख का प्रतिनिधित्व करता है। इन तीनों का समन्वय जीवन को आत्मिक और बाह्य रूप से भी सम्पूर्णता प्रदान करता है। शिव का यह रूप दर्शाता है कि सत्य ही कल्याण और संदेश है, जो हमें जीवन के हर पहलू में सही मार्ग दिखाता है।
कवि सुमित्रानंदन पंत ने इस दर्शन को व्यक्त करते हुए लिखा:
“वही प्रज्ञा का सत्य स्वरूप,
हृदय में बनता प्रणय अपार।
लोचनों में लावण्य अनूप,
लोक सेवा में शिव अविकार।।”
यह कविता हमें जीवन की सिद्धि और समाज सेवा में शिव के आदर्शों को अपनाने का संदेश देती है।
शिव की राजनीति और उनकी उदारता
भगवान शिव का जीवन अन्य देवताओं से बिल्कुल भिन्न है। वे देवता होते हुए भी मानवता के बहुत निकट हैं। उन्होंने कभी सुख-साधनाओं की इच्छा नहीं की और हमेशा देवताओं और मानवों को दानवों से रक्षा करने के लिए तत्पर रहे। शिव की उदारता ही उनकी पहचान है। वह अपने भक्तों के लिए हमेशा सरल और सहज रहते हैं, और उनसे मिलने के लिए किसी बड़े यज्ञ या तपस्या की आवश्यकता नहीं होती।
महाकवि पद्माकर ने भगवान शिव की उदारता की प्रशंसा करते हुए लिखा :-
“देश नर किन्नर कितेक गुण गावत पै,
पावत न पार जा अंनत गुण पूरे को।
कहैं पद्माकर सु गाल कै बजावत ही,
काज करि देत जन जाचक जरूरे को।
चंद की छटान जुत पन्नग फटान जुत,
मुकुट बिराजै जटा जुटन के जुरे को।
देखो त्रिपुरारि की उदारता अपार जहां,
पैहैं फल चारि फूल एक दै धतूरे को।”
यह उद्धरण भगवान शिव के जीवन की सादगी और दया को दर्शाता है। वह केवल एक फूल—धतूरे—से प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष) प्रदान करते हैं।
महाशिवरात्रि पर भगवान शिव से प्रार्थना
महाशिवरात्रि के इस पवित्र अवसर पर, हम सभी को भगवान शिव से अपनी प्रार्थना करनी चाहिए। महाकवि तुलसी ने इस संदर्भ में बहुत सुंदर शब्दों में प्रार्थना की है :-
“आशुतोष तुम औघढ़ दानी,
आरति हरहुं दीन मम जानी।।”
यह प्रार्थना भगवान शिव की आशीर्वाद और उदारता की ताकत को पहचानने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की उदारता, सत्य, शिव, और सुंदरता का संगम हमारे जीवन में शांति और संतुलन लाता है। शिव के आशीर्वाद से हम हर पहलू में सफलता और शांति प्राप्त कर सकते हैं। उनकी महिमा और आशीर्वाद हम सभी के जीवन को कल्याणकारी बना सकते हैं।