रांची : महाबोधि मंदिर प्रबंधन का विवाद फिर गहरा गया। इसे लेकर शनिवार को भीम आर्मी और मूलनिवासी संघ ने झारखंड में प्रदर्शन किया है। झारखंड के सभी जिलों में प्रदर्शन करने के बाद राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन डीसी को सौंपा गया। इसमें मांग की गई है कि बिहार सरकार पर दबाव डाला जाए कि वह महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्धों को सौंप दे।
साकची (जमशेदपुर) में शनिवार को मूलनिवासी संघ के द्वारा महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को बौद्धों के हवाले करने की मांग को लेकर एक जोरदार प्रदर्शन किया गया। यह प्रदर्शन डीसी ऑफिस के सामने तीन बजे हुआ, जिसमें संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। प्रदर्शन के बाद, एक ज्ञापन राष्ट्रपति के नाम से डीसी अनन्य मित्तल को सौंपा गया, जिसमें महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग की गई।
ज्ञापन में यह भी कहा गया कि बिहार सरकार को 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम को निरस्त करना चाहिए, ताकि महाबोधि मंदिर का संचालन और प्रबंधन बौद्धों के हाथों में आ सके। मूलनिवासी संघ के संगठन सचिव रंजीत बास्के ने कहा कि बौद्धों की नाराजगी बढ़ रही है क्योंकि उन्हें अपने धार्मिक स्थल का प्रबंधन करने का अधिकार नहीं मिल पा रहा है। उनका कहना था कि बिहार सरकार को यह कदम उठाकर बौद्ध समुदाय के बीच विश्वास बहाल करना चाहिए।
रंजीत बास्के ने इस मुद्दे में राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की अपील भी की और बिहार सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार बौद्धों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। उनके अनुसार, महाबोधि मंदिर, जो कि बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थल में से एक है, को उनके ही समुदाय के लोगों द्वारा ही संचालित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसा नहीं होता है तो बौद्ध समाज के बीच असंतोष और बढ़ेगा।
महाबोधि मंदिर और 1949 का विवाद
महाबोधि मंदिर, जो बोधगया (बिहार) में स्थित है, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक पवित्र स्थल है। यह वह जगह है जहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान किया था और ज्ञान की प्राप्ति की थी। महाबोधि मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है, न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में बौद्ध समुदाय के लोग इसे श्रद्धा की नजर से देखते हैं।
1949 में बिहार सरकार ने बोधगया मंदिर अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत मंदिर का प्रशासन और प्रबंधन सरकार के अधीन कर दिया गया था। इसके बाद से मंदिर का संचालन बिहार सरकार की ओर से किया जा रहा है। इस फैसले के खिलाफ बौद्धों का यह कहना है कि उन्हें अपने पवित्र धार्मिक स्थल के प्रबंधन का अधिकार होना चाहिए, क्योंकि यह स्थल उनके धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।
इस मुद्दे पर बौद्ध समुदाय का मानना है कि मंदिर का प्रबंधन सरकार के पास होने से बौद्धों की धार्मिक भावना का सम्मान नहीं हो पा रहा है। वे चाहते हैं कि मंदिर के प्रबंधन का अधिकार उन्हें दिया जाए ताकि वे अपने धार्मिक स्थल को अपनी आस्था के हिसाब से चला सकें।
विवाद का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की मांग केवल धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी है। बौद्धों के बीच यह एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है और अगर सरकार इस पर सकारात्मक कदम नहीं उठाती है तो इससे समाज में असंतोष और आक्रोश बढ़ सकता है।
वहीं, बिहार सरकार का तर्क यह है कि मंदिर का प्रबंधन सरकार के अधीन रहने से मंदिर के विकास और संरचना में बेहतर प्रबंधन हो सकता है। सरकार का यह भी कहना है कि इस समय मंदिर का प्रबंधन स्थानीय प्रशासन द्वारा किया जा रहा है, जो धार्मिक स्थल के महत्व और संरक्षण को सुनिश्चित करता है।
इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक दलों के बीच भी विचार विमर्श जारी है। कुछ दल बौद्ध समुदाय के समर्थन में खड़े हैं, जबकि अन्य इसके विरोध में हैं, जिससे मामला और भी जटिल हो गया है।
महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की मांग एक लंबी चली आ रही मांग है, जिसे अब जोर-शोर से उठाया गया है। बौद्धों का यह कहना है कि महाबोधि मंदिर, जैसा कि धार्मिक स्थल है, उसका प्रबंधन उनके ही समुदाय को करना चाहिए। इस विवाद का समाधान जल्द ही होने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन इसमें राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाएगा।
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