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Mahakumbh Rasoi: केवल अध्यात्मिक नहीं, बल्कि महाकुंभ में भक्तों को मिल रहा ‘Culinary’ एक्सपिरियंस

महाकुंभ की सबसे बड़ी रसोई हर दिन 3 लाख लोगों को भोजन प्रदान करती है। 24/7 सेवा, बड़े-बड़े बर्तन, जो हाथों से उठाए नहीं जा सकते, क्रेनों के जरिए विशाल चूल्हों पर रखे जाते हैं।

by Reeta Rai Sagar
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प्रयागराज। महाकुंभ 2025 केवल एक आध्यात्मिक महाकुंभ नहीं, बल्कि यह हजारों फूड लवर्स के लिए एक ‘कुलिनरी तीर्थयात्रा’ बन गया है। यहां पर भक्तों को ‘सात्विक’ भोजन का सर्वोत्तम अनुभव मिल रहा है, जो महाकुंभ में प्रसाद के रूप में परोसा जा रहा है। पूरे 40 वर्ग किलोमीटर के कुंभ क्षेत्र में 1,000 से अधिक ‘महाभंडारे’ और 500 पारंपरिक मेगा रसोई 24 घंटे काम कर रही हैं। इन रसोइयों में मलाई पनीर, दाल तड़का, राजमा, सब्जी पूरी, गुलाब जामुन, रसमलाई जैसी स्वादिष्ट व्यंजन परोसे जा रहे है। इतना ही नहीं, विदेशों से आए सनातनियों के स्वाद को ध्यान में रखते हुए सूप तथा उबली हुई सब्जियां भी परोसी जा रही है।

बड़े से कुकिंग पॉट को क्रेन की मदद से चूल्हे पर रखा जाता है। उबलते चावल और तले हुए मसालों की महक हवा में फैल जाती है, जो “ॐ नमः शिवाय” के भव्य मंत्रों के साथ मिश्रित हो जाती है। केसरिया रंग के वस्त्र पहने स्वयंसेवक अथक परिश्रम करते हैं और एकजुट होकर भक्तों के लिए भोजन तैयार करते हैं।

ओम नमः शिवाय सेवा समिति में 24 घंटे मिलता हैं मुफ्त भोजन

महाकुंभ की सबसे बड़ी रसोई हर दिन 3 लाख लोगों को भोजन प्रदान करती है। प्रयागराज के महाकुंभ 2025 के केंद्र में स्थित ओम नमः शिवाय नामक एक भव्य रसोई 24 घंटे काम कर रही है। ओम नमः शिवाय सेवा समिति, जो ओम नमः शिवाय बाबा के मार्गदर्शन में काम करती है, इस पवित्र आयोजन में सबसे बड़े मुफ्त भोजन सेवा का संचालन करती है। यह विशाल रसोई एक एकड़ में फैली हुई है।

“यह भगवान की अपनी रसोई है”- स्वंयसेवक कामेश्वर तिवारी

लखनऊ के स्वंयसेवक कामेश्वर तिवारी कहते है, “यह भगवान की अपनी रसोई है,” वे पिछले दो दशकों से यहां सेवा दे रहे हैं। “कोई भी किसी भी समय यहां आ सकता है और गर्म खाना प्राप्त कर सकता है। कोई भी भूखा नहीं जाता। यहां तक कि 2 बजे या 4 बजे भी कोई भी आकर गर्म खाना प्राप्त कर सकता है।” 24/7 सेवा, बड़े-बड़े बर्तन, जो हाथों से उठाए नहीं जा सकते, क्रेनों के जरिए विशाल चूल्हों पर रखे जाते हैं। हर बैच में 1.5 से 2 क्विंटल (150-200 किलो) चावल पकाया जाता है, साथ में पर्याप्त सब्जियां और दालें जो एक बार में 25,000 से 30,000 लोगों को भोजन देने के लिए पर्याप्त होती हैं। यह रसोई बहुत बड़े पैमाने पर काम करती है, जिसमें 40 क्विंटल क्षमता वाले वाल्ट्स और स्वचालित मशीनें होती हैं, जो एक बार में 5,000 पूरियां बनाती हैं। यह रसोई रोज़ाना 3 से 3.5 लाख (300,000-350,000) भक्तों को भोजन प्रदान करती है। इस रसोई में 2,000 से अधिक स्वयंसेवक 24 घंटे शिफ्टों में काम करते हैं, ताकि निर्बाध सेवा प्रदान की जा सके।

महाकुंभ में कहां-कहां चल रही रसोई

केन्द्र रसोई सेक्टर 1, त्रिवेणी मार्ग में स्थित है, लेकिन महाकुंभ के विभिन्न हिस्सों में छह और रसोई चल रही हैं। सेक्टर 2 (दारागंज संगम स्टेशन), सेक्टर 6 (नाग वासुकी), सेक्टर 8, सेक्टर 12, सेक्टर 14 और सेक्टर 16। प्रत्येक स्थान पर स्थानीय भक्तों के लिए भोजन तैयार किया जाता है, ताकि बढ़ते हुए भक्तों की संख्या को देखते हुए कोई भी भूखा न जाए।

1992 में शुरू की थी रसोई सेवा

सेवा और भक्ति की परंपरा की यह सेवा 1992 में शुरू हुई थी, जब लाल महेन्द्र, जो एक आर्मी कुक थे, ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपना जीवन भगवान शिव को समर्पित अपना जीवन शुरू किया। समय के साथ उनका यह आंदोलन बड़ा हुआ और आज उनके ट्रस्ट के चार आश्रम प्रयागराज, लखनऊ, अयोध्या और कानपुर में हैं, जो मुफ्त भोजन सेवा चला रहे हैं। हाल ही में यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने इस रसोई का दौरा किया और प्रसाद लिया।

100 से अधिक स्वयंसेवक, जो महाप्रसाद बनाने में करते है मदद

महाकुंभ की सबसे बड़ी स्वचालित रसोई हर घंटे 40,000 चपाती तैयार करती है। महाकुंभ में, अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसाइटी (ISKCON) अपने कैंप में एक विशाल रसोई चलाती है, जो सेक्टर 19 में स्थित है। यह रसोई परंपरा और स्वचालन का अद्भुत मिश्रण है, इसमें तीन मशीनें हर घंटे 40,000 रोटियां बनाती हैं। राधाकुंड दास, जो इस रसोई के सहायक प्रभारी हैं, कहते हैं, “हमारे पास हर दिन 100 से अधिक स्वयंसेवक होते हैं, जो मशीनों के साथ आटा गूंथने, सब्जियां काटने और महाप्रसाद तैयार करने में मदद करते हैं।”

यह रसोई प्रतिदिन 1.5 लाख भक्तों को भोजन प्रदान करती है, इसके संचालन में उद्योगपति गौतम अडानी का भी सहयोग है। दास बताते है, “हमारे पास बड़े बर्तनों को रसोई के विभिन्न हिस्सों में ले जाने के लिए एक मिनी रेल ट्रैक सिस्टम है,”। रसोई में एक पुली सिस्टम भी है, जो इन विशाल बर्तनों को उठाने और घुमाने में मदद करता है, ताकि सभी काम सहज तरीके से हो सकें।

अखाड़ों के भोजन मे लहसुन, प्याज, बैंगन और दाल पर प्रतिबंध

अखाड़ों की अपनी रसोई होती है इसके अलावा, महाकुंभ के प्रत्येक 13 अखाड़े की अपनी रसोई होती है, जिसे एक “कोठारी” द्वारा संचालित किया जाता है, जो आमतौर पर एक संन्यासी होते हैं, हालांकि बड़े आयोजनों में निजी कैटरर्स को भी यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। अखाड़ा परिषद के सदस्य बताते हैं कि अखाड़ा रसोई सख्त नियमों के तहत काम करती है, जिसमें लहसुन, प्याज, बैंगन और दाल जैसी सामग्री पर प्रतिबंध होता है।

रसोई में परोसी जाती है मिठाईयां

विशिष्ट तिथियों या अनुष्ठानों के आधार पर विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। रसोई सुबह 5 बजे से काम करना शुरू कर देती है और प्रातःकाल की पूजा के बाद ‘बालभोग’ परोसा जाता है। दोपहर में पूर्ण भोजन दिया जाता है, और शाम को आरती के बाद रात का खाना परोसा जाता है। सामान्य व्यंजन में दाल, चावल, रोटी और विभिन्न सब्जियां शामिल होती हैं, जबकि मेन्यू अखाड़े की क्षमता के आधार पर बदलता रहता है। मिठाईयों में बालूशाही, लड्डू, चंद्रकला और रसगुल्ला परोसे जाते है और इनकी मात्रा अखाड़े में रहने वालों और आने वाले भक्तों की संख्या पर निर्भर करती है। अखाड़े संतों और सामान्य लोगों दोनों को भोजन प्रदान करते हैं। ये रसोई महाकुंभ समाप्त होने के बाद भी आश्रमों में जारी रहती हैं।

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